कोई रूठ गया ऐसे कि मनाया ना गया,
था ज़ख्म जरा गहरा कि दिखाया ना गया...
वो जो समझे कि हूँ बेज़ार मोहब्बत से मैं,
रिवायतों को हकीक़त भी बताया ना गया...
रोया था मेरी शानो पर कोई जो कभी,
था दाग कफन पर जो मिटाया ना गया...
जिंदा था कोई; चल रही थी कुछ साँसें अब भी,
मेरी दीवारों से बेलों को हटाया ना गया...
बेशक थी मेरी जान जिसे रुख़सत है किया,
मेरे हिस्से का हक्क भी मुझसे जताया ना गया...
- स्वाति जोशी
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