ऐसी शिक्षा भी मत दो, कि
गांव ही खाली हो जाएं।
सामाजिक बनने की होड़ में
संस्कारों को खो जाएं।
शिक्षा उतनी रखो मस्तिष्क में
जो खुद को भुला ना पाए।
दर्प ना रखना मन में इतना,
कहीं वृद्धा आश्रम भर जाए।
माया उतनी हासिल करना,
वहम न मन में पाल सको।
अपने से कम दर्जे वाले को,
खुद के बराबर मान सको।
शिक्षा उद्दधि है आचारों की,
छोटे बड़े का भेद नहीं।
हो चाहे तुम सफल शिखर पर,
मन में बिल्कुल खेद नहीं।
- कैलाश उप्रेती "कोमल"
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