जनाब आदमी हूँ, कुछ कह नही सकता
दिल तो दुखता है, पर मै रो नही सकता
जिम्मेदारी की भट्टियों से भुना गया हूं मैं
इस लिए इतना जल्दी थक नही सकता।
रुकना चाहता हूँ, पर मैं रुक नही सकता
अब रिश्ते निभाने से पीछे हट नही सकता
आत्म सम्मान के बोझ से दबा हुआ हुँ मैं
यहाँ चाह कर भी सर झुका नही सकता।
दुनिया की निगाहों से छिपा नही सकता
आदमी हूँ, किसी से कुछ कह नही सकता
होठो पर शहद व हाथों मे नमक लिए है
गम है वो, उन्हें में दिखा भी नही सकता।
- अनिल चौबीसा

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