साहित्य चक्र

22 January 2025

कविता- यादें



 यादें याद आ रही है,
 अपने पास बुला रही है।
वो भी क्या दिन थे,
 जब हम बच्चे थे।
 उम्र के कच्चे थे,
 पर दिल के सच्चे थे।
हर किसी से दोस्ती,  
न किसी से दुश्मनी।

 वो माँ का दुलार,
 वो पापा का प्यार।
 न किसी से तकरार,
 न किसी से फटकार।
 यादें याद आ रही है,
 अपने पास बुला रही है। 
 सुबह घर से निकलना,
 दोस्तों से मिलना।
न किसी से डरना,
 हरपल सिर्फ हंसना।
 वो बचपन के खेल,
 हर किसी से मेल।
 दादी नानी की कहानियाँ,
 न कोई तन्हाइयाँ।
न कोई थकान,
न कोई आराम।
वो गाँव की तंग गलियाँ,
 वो फूलों की कलियाँ।
 यादें याद आ रही है , 
अपने पास बुला रही है।

अब केवल यादें शेष,
 जीवन मे न अब कुछ विशेष।
 सुबह घर से जाना,
 शाम को घर आना।
 केवल जिम्मेदारियाँ,
 केवल जवाबदारियाँ।
अब केवल तकरार,
 हर किसी की फटकार।
अब केवल भागादौडी़,
 हर पल माथाफौडी़।
अब न कोई आराम,
 जीवन हरपल हराम।
 यादें याद आ रही है,
 अपने पास बुला रही है।


                                                       - भुवनेश मालव मोरपा



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