यादें याद आ रही है,
अपने पास बुला रही है।
वो भी क्या दिन थे,
जब हम बच्चे थे।
उम्र के कच्चे थे,
पर दिल के सच्चे थे।
हर किसी से दोस्ती,
न किसी से दुश्मनी।
वो माँ का दुलार,
वो पापा का प्यार।
न किसी से तकरार,
न किसी से फटकार।
यादें याद आ रही है,
अपने पास बुला रही है।
सुबह घर से निकलना,
दोस्तों से मिलना।
न किसी से डरना,
हरपल सिर्फ हंसना।
वो बचपन के खेल,
हर किसी से मेल।
दादी नानी की कहानियाँ,
न कोई तन्हाइयाँ।
न कोई थकान,
न कोई आराम।
वो गाँव की तंग गलियाँ,
वो फूलों की कलियाँ।
यादें याद आ रही है ,
अपने पास बुला रही है।
अब केवल यादें शेष,
जीवन मे न अब कुछ विशेष।
सुबह घर से जाना,
शाम को घर आना।
केवल जिम्मेदारियाँ,
केवल जवाबदारियाँ।
अब केवल तकरार,
हर किसी की फटकार।
अब केवल भागादौडी़,
हर पल माथाफौडी़।
अब न कोई आराम,
जीवन हरपल हराम।
यादें याद आ रही है,
अपने पास बुला रही है।
- भुवनेश मालव मोरपा

No comments:
Post a Comment