साहित्य चक्र

20 January 2025

कविता- महाकुंभ



सत्य सनातन पर्व का
अस्तित्व है ये धर्म का
डुबकी लगाते हैँ लोग यहाँ
आस्था और कर्म का

कुंभ है महाकुम्भ है
सनातनियों का हुजूम है
सांस्कृतिक आयोजन का
यहाँ समागम है
अमृत की बुंदे गिरी यहाँ
यही प्रयागराज है
यहाँ पे गंगा,यमुना और 
सरस्वती का संगम है
अद्धभुत अलौकिक छवि यहाँ की
साधु संतो का डेरा है
ऋषि मुनियों से शोभित
सनातनियों का बसेरा है

आरम्भ है उत्साह का
भक्ति का महाकुम्भ है
कुसुंभ की भाती शोभित
माथे पे शुशोभित है

संत साधु अघोरियों से
ये धरा तृप्त है
चिंतन ,मनन ,मंथन यहाँ
ये धरा संतृप्त है

सत्य सनातन पर्व का
अस्तित्व है ये धर्म का
कुंभ है महाकुम्भ है
सनातनियों का हुजूम है


                          - ममता रानी


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