साहित्य चक्र

30 January 2025

कविता- ये पल ठहर जाए



एक नदी के किनारे
क्या खूबसूरत नज़ारे
हम तुम एक साथ 
लेकर हाथ में हाथ
देख रहे सूरज को उगते
एक नई उम्मीद को पलते
हवा की सरसराहट
आने वाले पल की ये आहट
चिड़ियों का चहचहाना
एक दूजे को देख हमारा मुस्कुराना
रंग बिरंगे फूलों की महक 
एक ही पल मानों जायेंगे बहक
अजब प्यार का ये अहसास
हर पल लग रहा है खास
काश! ये पल ठहर जाए
असीम प्रेम की 
अनुभूति से हमें भर जाए। 


                              - कला भारद्वाज

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