साहित्य चक्र

08 January 2025

कविता- मोबाइल की हैसियत




कैसा ज़माना आया आज
आदमी क्या से क्या हो गया
जिंदा इंसानों की कद्र नहीं
मोबाइल में इस कदर खो गया

समय नहीं है बार बार यह है बतलाता
मोबाइल पर ही अपना समय है बिताता
बर्बाद कर रहा समय इसके चक्कर में
खत्म कर दिया इसने सब रिश्ता नाता

लिखना भी भूल रहा इसी पर सब लिख जाता
घड़ी कोई नहीं डालता यही अब समय है बताता
गुणा भाग जमा घटाना सब तुरंत है कर देता
हर घर की जरूरत आज है मोबाइल बन जाता

छोटा हो या बड़ा सबको इसने है घुमाया
दिमाग कर दिया कमज़ोर जब से हाथ में है आया
अब तो जेब में पैसा रखने की भी ज़रूरत नहीं
इसी को है लोगों ने अपना बैंक बनाया

जिसने किया सही उपयोग उसका काम बनाया
किया जिसने दुरुपयोग उसको बहुत सताया
रिश्ते नाते यारी दोस्ती सब छीन ले गया
सोचो इसके आने से क्या खोया क्या पाया

- रवींद्र कुमार शर्मा


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