शिक्षा नगरी से प्रसिद्ध कोटा शहर में छात्रों का सुसाइड करने के मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। इन सुसाइड मामलों का सीधा असर कोटा शहर की छवि पर पड़ रहा है। हाल ही में कोटो के जवाहर नगर क्षेत्र में बूंदी निवासी मनन जैन नाम के छात्र ने फांसी लगाकर आत्महत्या की थी और ठीक 24 घंटे बाद उड़ीसा निवासी अभिजीत गिरी ने फांसी लगाकर सुसाइड कर ली। मनन और अभिजीत जेईई की तैयारी के लिए कोटा आए हुए थे। अब तक जनवरी 2025 में चार बच्चों ने सुसाइड कर लिया है। 2016 में कृति नाम की एक छात्रा ने अपने सुसाइड नोट में कोचिंग संस्थानों को बंद करवाने की बात कही है।
हमारे जो बच्चे कमजोर हैं, वो आत्महत्या कर रहे हैं और जो थोड़ा मजबूत हैं, वो नशे की ओर बढ़ रहे हैं। क्योंकि जब हमारे बच्चे असफलताओं से टूट जाते हैं तो उन्हें यह पता नहीं होता है कि इससे कैसे निपटना है। बच्चों का कोमल हृदय असफलता और नाकामी से टूट जाता है। इसलिए आज आत्महत्याएं जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं।
कोटा में आत्महत्या करने वाली छात्रा कृति का सुसाइड नोट पढ़िए-
“मैं भारत सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय से कहना चाहती हूं कि अगर वो चाहते हैं कि कोई बच्चा न मरे तो जितनी जल्दी हो सके इन कोचिंग संस्थानों को बंद करवा दें। ये कोचिंग छात्रों को खोखला कर देते हैं। पढ़ने का इतना दबाव होता है कि बच्चे बोझ तले दब जाते हैं।
मैं कोटा में कई छात्रों को डिप्रेशन और स्ट्रेस से बाहर निकाल कर सुसाइड करने से रोकने में सफल हुई, लेकिन खुद को नहीं रोक पा रही हूँ। बहुत लोगों को विश्वास नहीं होगा कि मेरे जैसी लड़कियाँ जिसके 90+ मार्क्स हो वो सुसाइड भी कर सकती हैं, लेकिन मैं आपलोगों को समझा नहीं सकती कि मेरे दिमाग और दिल में कितनी नफरत भरी है।”
अपनी माँ के लिए कृति लिखती है- “आपने मेरे बचपन और बच्चा होने का फायदा उठाया और मुझे विज्ञान पसंद करने के लिए मजबूर करती रहीं। मैं भी विज्ञान पढ़ती रहीं ताकि आपको खुश रख सकूं। मैं क्वांटम फिजिक्स और एस्ट्रोफिजिक्स जैसे विषयों को पसंद करने लगी और उसमें ही बीएससी करना चाहती थी लेकिन मुझे आज भी अंग्रेजी साहित्य और इतिहास बहुत अच्छा लगता है क्योंकि ये मुझे मेरे अंधकार के वक्त में मुझे बाहर निकालते हैं।”
कृति का अपनी मां को चेतावनी- “इस तरह की चालाकी और मजबूर करने वाली हरकतें 11वीं कक्षा में पढ़ने वाली छोटी बहन से मत करना। वो जो बनना चाहती है और जो पढ़ना चाहती है, उसे वो करने देना। क्योंकि वो उस काम में सबसे अच्छा कर सकती है, जिससे वो प्यार करती है।”
कृति के इस सुसाइड नोट को पढ़कर मन विचलित हो जाता है और अभिभावकों पर कई प्रश्न खड़े होते हैं। प्रतिस्पर्धा के इस होड़ में हम अपने बच्चों के सपनों को क्यों छीन रहे हैं ? आज हम लोगों से सिर्फ प्रतिस्पर्धा करना सीख कर रहे हैं और अपने बच्चों पर थोंप रहे हैं। जैसे- फलां का बेटा और बेटी डॉक्टर बन गए, तुम्हें भी बनाना है। फलां की बेटी व बेटा सीकर, कोटा हॉस्टल में हैं, तुम्हें भी वहीं पढ़ना है। चाहे हमारे बच्चे के सपने कुछ और हो। मगर हम उन पर अपने सपने थोंप रहे हैं। आखिर क्यों और कब तक ?
आज हमारे स्कूल, बच्चों को पारिवारिक रिश्तों का महत्व और असफलताओं से लड़ना नहीं सीखा पा रहे हैं। आखिर क्यों हमारे बच्चों के जहन में शिक्षा के नाम पर सिर्फ एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा के भाव भरे जा रहे हैं, जो जहर बनकर उनकी जिंदगियां छिन रहे हैं। आखिर कब तक हमारे बच्चों की जिंदगियों से यह खेल खेला जाएगा ?
- दीपक कोहली

चिंतन का विषय है।
ReplyDeleteचिंतनीय विषय
ReplyDelete