"चलो रे सब ! दिनेश कुड़ी लाया है !!" अचानक मेरे कानों में आवाज गूंजी। मेरे चचेरे भाई की आवाज थी यह।उन दिनों मैं इंटर की पढ़ाई कर रहा था। कभी-कभी अपने गांव आता था। ऐसे ही उस दिन मैं गांव में ही था।मेरे गांव के बच्चे और लड़के किसी के घर मेहमान आने पर भी देखने के लिए जमा हो जाते हैं, यहां तो दिनेश चचा ने कुड़ी(लड़की) लाया था तो भला बच्चों में कौतूहल क्यों न हो। मैं भी दौड़कर दिनेश चचा के घर की ओर भागा।
दिनेश चचा के आंगन में गांव के लोगों की भीड़ भरी थी। किसी तरह भीड़ चीरकर आगे निकला तो देखा बीच आंगन में एक खाट पर लंबे बालों में दिनेश चचा बैठे थे। उन दिनों टीम इंडिया में नई-नई महेंद्र सिंह धौनी की एंट्री हुई थी सो हमारे झारखण्ड में लंबे बाल रखने का एक ट्रेंड चल पड़ा था। इससे मैं भी अछूता नहीं था। दिनेश चचा के ठीक बगल में खाट पर एक सुंदर, छरहरी काया वाली पटियाला सूट पहनी पंजाबी कुड़ी भी थी। दोनों की जोड़ी बहुत शानदार लग रही थी। गांव-मुहल्ले के सम्मानित लोग और दिनेश चचा के घर के बड़े लोग उन दोनों को घेरकर गांव-समाज की पारंपरिक पंचायती शुरू कर चुके थे।
दरअसल कुछ महीने पहले ही दिनेश चचा काम की तलाश में पंजाब गये थे। वहीं पर उस कुड़ी से नज़रें मिलीं। फिर दोनों करीब आए। कुड़ी का नाम गुरमीत कौर था। उसके बाद तो उनका प्यार इस क़दर परवान चढ़ा कि एक दिन कुड़ी ने पंजाब की लहलहाती गेहूं और सरसों के माहौल को छोड़कर दिनेश का हाथ थामकर झारखण्ड की खूबसूरत पहाड़ी वादियों के आगोश में आने का फैसला किया। आज़ वही ख़ास दिन था।
खैर ! पंचायती खत्म हुई। दिनेश चचा और गुरमीत कौर को एक साथ जीवन बिताने की मंजूरी मिली। दिनेश चचा के घर वालों की शर्त थी कि बेशक वो अपने हिस्से में अपनी बीवी के साथ रहकर आगे की ज़िंदगी जिए लेकिन स्वर्णकार समाज में उसे एंट्री नहीं दिया जाएगा। प्रेमी जोड़े ने घरवालों और गांव वालों की इस शर्त को सहर्ष मंजूर कर लिया।
धीरे-धीरे वक्त बीतने लगा। कुड़ी कुछ ही दिनों में गांव के बच्चे,बूढ़े,औरत, युवक-युवतियां सबके दिल में बस गई। वो सबके साथ घुल-मिल कर रहती। कभी-कभी गांव के बच्चों के साथ जींस-टी शर्ट पहन कर क्रिकेट खेलने चली जाती तो कभी गांव की गलियों में गिल्ली-डंडा भी खेलती थी। हमारे गांव के परिवेश में यह सब थोड़ा सा अजूबा ज़रूर था लेकिन हमारा गांव शिक्षा के लिहाज़ से इतने आगे की सोच रखता है कि हर नई चीज़ को स्वीकार करने में ज्यादा समय नहीं लगाता है।
इसलिए कुड़ी को भी गांव में किसी भी तरह से कोई दिक्कत नहीं हुई। चूंकि मेरे गांव के लोग परस्पर सहयोग के लिए भी एक मजबूत सामाजिक ढांचे के रूप में व्यवस्थित है इसलिए बीतते वक्त के साथ कुड़ी को गांव के सरकारी स्कूल में अनुबंध पर सिलाई सिखाने के काम में भी लगा दिया। दिनेश चचा इधर-उधर काम करने जाते और कुड़ी सिलाई सिखाने के साथ ही घर पर लोगों के कपड़े भी सिलाई करने लगी जिसके बदले उसे कुछ पैसे भी मिल जाते थे। दोनों की ही जिंदगी ट्रैक पर चलने लगी।
अचानक एक दिन गांव में ख़बर फैली कि कुछ पंजाबी लोग पुलिस लेकर गांव आए हैं। यह खबर मिलते ही पूरा गांव दिनेश चचा के घर की ओर भागा। कुड़ी के पापा पंजाब से कुछ लोग और पुलिस को लेकर आए थे। कुड़ी यहां से जाना नहीं चाह रही थी पर जबरदस्ती उनके पापा उसे यहां से लेकर जाने लगे। दिनेश चचा की आंखें भर आईं और साथ ही गांव के सभी लोगों में मायूसी सी छा गई। लेकिन अगले ही पल कुड़ी ने आत्मविश्वास से भरकर जो कहा उसे सुनकर सबके चेहरे खिल उठे। उसने सबकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा- "डोंट वरी यार ! पंछी हूं ! मुझे कैद कैसे रख पाएंगे ये ? फ़िर से उड़कर आ जाऊंगी !"
सचमुच कुछ ही दिनों बाद एक सुबह कुड़ी वापस भी आ गई। एक बार फिर दिनेश चचा की ज़िंदगी में बहार और गांव के लोगों के चेहरे पर ख़ुशी लौट आई थी। एक बार फिर दोनों खुशी-खुशी साथ रहने लगे। लेकिन अचानक एक दिन उनकी जिंदगी में हलचल मच गई। पारिवारिक कलह की वजह से दोनों का घर में जीना मुहाल हो गया। लेकिन दोनों ने ही हिम्मत नहीं हारी। इतने दिनों से रहते हुए इलाके में उनकी सब लोगों से अच्छी पहचान हो गई थी सो बगल के गांव में एक आदमी की जमीन पर उन्हें घर बनाकर रहने की इजाजत मिल गई। कुड़ी और दिनेश चचा ने मिलकर जल्दी ही ईंट और मिट्टी का एक छोटा सा घर तैयार कर डाला। अब उस पर एस्बेस्टस की छत भी डाल दी गई। दोनों उसी में रहने लगे।एक बार फिर से दोनों की ज़िंदगी पटरी पर लौट आई थी।
हालांकि अबतक उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ था लेकिन दोनों की लाइफस्टाइल में सुधार आने लगा था। दिनेश चचा मजदूरी का काम छोड़कर अब एक नेटवर्क मार्केटिंग का काम करने लगे थे। कुड़ी भी इस काम में उसका हाथ बंटाती थी। अब तो दिनेश चचा ने एक स्प्लेंडर बाइक भी ले ली थी। मुझे उनकी जोड़ी और उनके मिलन की कहानी इतनी ज्यादा अच्छी लगती थी कि मैं हमेशा ईश्वर से प्रार्थना करता था कि इनकी जोड़ी को किसी की नज़र ना लगे। ये लोग दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की करें। सिर्फ़ इन्हें ही नहीं बल्कि हर अच्छी जोड़ी को देखकर मैं बहुत गहराई से सोचता हूं। मुझे यह भी लगता है कि इन मामलों में मेरी तरह से नहीं सोचता होगा।
लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। पांच साल बाद एक दिन अचानक पता चला कि कुड़ी कहीं ग़ायब है। वो चार-पांच दिन से लापता है। वास्तव में हुआ क्या है ये किसी को मालूम नहीं था। कोई कहता कि कुड़ी को उसके पापा ले गए हैं, कोई कहता किसी ने उसे मार दिया है तो कोई कहता कुड़ी किसी के साथ भाग गई है। मेरा मन विचलित हो उठा। मेरा दिल बिल्कुल इस बात को नहीं मान सकता था कि जिस लड़की ने दिनेश चचा के लिए इतना संघर्ष किया वो किसी और के साथ हरगिज़ नहीं भाग सकती। अब तक मैं भी ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी कर सरकारी स्कूल में पारा शिक्षक की नौकरी करने लगा था। मैं पैदल उसी गांव से होकर अपने स्कूल जाता था जहां उन लोगों ने घर बनाया था।
कभी-कभी दिनेश चचा को अकेले घर घुसते या घर से निकलते देखता तो मन व्यथित हो उठता। मन ही मन सोचता कि या खुदा ! सबकुछ ठीक कर देना। इनकी प्रेम-कहानी का इस तरह से खात्मा नहीं कर सकते आप। मुझे पूरी उम्मीद थी कि ज़रूर शाय़द कुड़ी पंजाब ही गई है और एक दिन फिर से उड़कर आ जाएगी। इसी बीच अचानक एक दिन मैं गांव के ही किसी आदमी के साथ बाइक से गांव लौट रहा था। रास्ते में देखा कुछ लोग किसी आदमी का अंतिम संस्कार कर नदी से लौट रहे हैं। मैंने बाइक वाले से पूछा कि कौन मर गया। उस आदमी ने बताया कि दिनेश मर गया।
मैं अंदर से कांपकर मायूस हो गया। रूंधी हुई आवाज़ में पूछा कि उसे क्या हुआ था। उस आदमी ने बताया कि उसे कोई बीमारी थी इलाज के दौरान मर गया। मैं मन ही मन नियति को कोसने लगा कि कैसा तेरा खेल है ? कहां तो मैं सोचता था कि एक बार फिर से चमत्कार होगा और कुड़ी फिर से लौट आएगी। उसके बाद सबकुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन यहां तो उम्मीदों पर पूर्ण विराम लग चुका था। एक हसीन प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत हो चुका था। आजतक किसी को पता नहीं कि कुड़ी का क्या हुआ ?
- कुणाल


♥️♥️
ReplyDelete