साहित्य चक्र

26 April 2024

कविताः ऐसी क्या मजबूरी है




बिना रिश्तों के यह ज़िन्दगी अधूरी है
रिश्तों का होना ज़िन्दगी में बहुत ज़रूरी है
मर मर कर क्यों जी रहे हैं लोग विचार करो
क्यों भूल गए रिश्तों की एहमियत ऐसी क्या मजबूरी है

माता पिता ने बच्चों को पढ़ाया लिखाया
पेट अपना काट कर उनको खिलाया
उस पढ़ाई से तो थे अनपढ़ ही अच्छे
जिसने मां बाप को बृद्धाश्रम पहुंचाया

अब कहां मिलेगा पुत्र जैसे श्रवण कुमार
जिसने माता पिता पर सब कुछ दिया वार
आजकल कौन रखना चाहता है पुरानी चीजें
माया के इस चक्कर ने कई घर दिए उजाड़

नई पीढ़ी रहने लगी है अब बुजुर्गों से दूर
खो गई जवानी नशे में रहती है हरदम चूर
संस्कार तो जैसे गुम हो गए अंधरे में कहीं
बड़ा बन गया अगर तो भी काहे का ग़रूर


                                           - रवींद्र कुमार शर्मा


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