साहित्य चक्र

29 September 2025

संस्मरण- बचपन का हसीन किस्सा


कैसे बयां करूं! अपने आंसुओं को इस लेख में, क्योंकि मैंने तो यह सब रिश्ते बहुत पहले ही खो दिए हैं। नाना-नानी, दादा-दादी, तो दूर की बात मैंने तो अपने मां-बाप को भी वक्त से पहले खोया हुआ है। फिर भी आज मैं अपना एक हसीन और ताउम्र याद रखने वाला किस्सा जयदीप पत्रिका के माध्यम से बताना चाहती हूं।





मैंने अपने नाना-नानी को कभी देखा नहीं पर अक्सर अपनी अम्मा जी से उनकी बातें सुनती थी। मेरा कोई ज्यादा अनुभव नहीं, पर एक छोटा-सा हसीन वाक्य अपनी जिंदगी का मेरी अम्मा जी की ताई (जिसने मेरी अम्मा जी को पाला था) के साथ जो हुआ था वह आज यहां बताऊंगी।

मैं बहुत छोटी थी, तीसरी कक्षा में पढ़ती थी। बहुत पुरानी बात है, मैं यह सोचती थी कि जिनको चश्मा लगा होता है उनको बिल्कुल नहीं दिखता है, मुझे सच में ही इसके बारे में ऐसा ही पता था कि जो बूढ़ा व्यक्ति चश्मा लगाता है, उसको बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता है।

एक दिन मुझे घर में एक ऐसा सिक्का मिला जिसको खोटा सिक्का कहते थे और उस सिक्के को लेकर एक ननिहाल में दुकानदार थे उनकी दुकान पर वह ₹1 का सिक्का लेकर चली गई। उस वक्त ₹1 की बहुत-सी खट्टी-मीठी गोलियां मिलती थी, जो खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होती थी। मैंने उस दुकानदार से खाने की खट्टी-मीठी गोलियां मांगी और एक हाथ में वह खोटा सिक्का रखा था जो चलता नहीं था।

एक हाथ से वह सिक्का दिया और दूसरे हाथ से मैंने वह गोलियों का लिफाफा लिया और झट से दुकान से निकल गई। पर जैसे ही उस दुकानदार ने वह खोटा सिक्का देखा, तो वह मेरे पीछे दौड़ा। मैं आगे दौड़ी और दुकानदार मेरे पीछे दौड़ा। पर मैं उनके हाथ ना आई और दूर जाकर बहुत बुरी ढंग से गिरी। मेरी सारी गोलियां इधर-उधर बिखर गई और मेरी टांग में चोट लग गई।

मैं बहुत रोई और मेरी सारी गोलियां जिनके लिए मैंने यह सब चालाकी की थी, वह भी मेरे पास नहीं रही। पर मैं उस दुकानदार के हाथ में नहीं आई उठी और फिर दौड़ती हुई चली गई। शाम को वह दुकानदार मेरी चालाकी की शिकायत लेकर हमारे घर मेरी नानी के पास पहुंच गया।

मैं दोपहर के बाद लंगडी चल रही थी क्योंकि, मुझे सुबह गिरने से लगी थी, पर मैंने किसी को नहीं बताया था कि मुझे क्या हुआ है। जैसे ही नानी ने मुझे बुलाया की आपने ऐसा किया, तो मैंने अपने नानी से सच कह दिया कि मुझे ऐसा ही पता था कि चश्मा लगे हुए व्यक्तियों को नहीं दिखता और इसलिए मैंने यह सब किया।

नानी ने उस दुकानदार को एक रुपया दिया और कहां की कोई बात नहीं बच्चे ऐसा कर देते हैं। उनके सामने नानी ने मुझे इतना ही कहा कि ऐसा नहीं करते और आज के बाद कभी ऐसा मत करना। फिर अगले दिन नानी मुझे ₹2 की वैसी ही गोलियां खट्टी-मीठी ले आई और मुझे दे दी और समझाया कि आज के बाद कभी ना झूठ बोलना, ना कभी चालाकी करना।

यही शब्द मेरे लिए आज तक वैसे ही है, नानी तो चली गई पर उनके दिए हुए ये दो सच्चाई और ईमानदारी शब्द मेरे लिए उनकी विरासत बन गई। भले ही वो आज इस दुनिया में ना हो, मगर उनकी यादें मेरी जिंदगी में हर पल मेरे साथ है।यही मेरा एक छोटा-सा अनुभव मेरी नानी के साथ रहा। मैंने अपने जीवन का एक छोटा-सा किस्सा जयदीप पत्रिका के माध्यम से आप सभी के साथ साझा किया।


- रेखा चंदेल / विलासपुर, हिप्र




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