साहित्य चक्र

01 September 2025

शब्द आधारित मनमोहक रचनाएँ




मुस्कान





कामयाबी का जिस पर असर नहीं
जो दुख में नहीं परेशान
खुश तो वही है जीवन में
जिसके चेहरे पर हमेशा रहती है मुस्कान
मुस्कुराना तो चेहरे की शान होता है
दिल में यदि जख्म हैं तो भी मुस्कुराना चाहिए
बंदिशें बहुत होती हैं सम्माज की
फिर भी दिल लगाना चाहिए


- रवींद्र कुमार शर्मा, बिलासपुर, हिप्र



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यादें





तेरी मोहक, मधुर एवं रमणीय यादें
मुझे उपवन सा महकाती हैं
फूलों सा हंसाती हैं
कोयल सा मधुर- सुरीला राग सुनाती हैं
मन को मयूर सा नृत्य कराती हैं
मिश्री घोल ख्यालों में, ख्वावों में
तेरे ना होने पर भी तेरी ये मधुर यादें
तन्हाई में हमेशा मेरा साथ निभाती हैं।


- प्रवीण कुमार, बिलासपुर, हिप्र



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मुस्कान 



हल्की सी मुस्कान चेहरे पर रखा करो
गम तो है सबके पास , गमों से नाता तोड़ा करो।
मुस्कुराहट सब रोगों की है दवाई
मन होता है हल्का जब जब हैं ये आई।
हर किसी की पसंद बन है जाते
खुशियों भरी गुजरती है दिन व रातें।
उदासियों से कुछ नहीं है होने वाला
होगा तो वहीं जो चाहेगा उपर वाला।

 
- विनोद वर्मा, मंडी, हिप्र




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मोहब्बत





कभी-2 यकीनन सारे भरम टूट जाते हैं
जीते जी इन सांसों के रिदम टूट जाते है

दिल से बने गहरे इन रिश्तों की खातिर
मोहब्बत में दुनिया के नियम टूट जाते है

न मजहब न ख़ुदा न सजदा न इबादत
मोहब्बत में सरहद और धरम छूट जाते हैं

मोहब्बत में दुनिया के नियम टूट जाते...


- नरेन्द्र सोनकर बरेली



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पहाड़




पहाड़ों से एक आवाज़ आई थी,

बनकर संगीत मन में समाई थी।

दूर देश में रहती है कोई परी,
शायद रब ने मेंरे लिए बनाई थी।

सूरत उसकी देखना हुआ दूभर,
चट्टानों की निहायत ऊँचाई थी।

कल्पना मेरी पहाड़ों में रह गयी,
ये कहानी माँ को भी सुनाई थी।


- आनन्द कुमार, गाज़ियाबाद, यूपी



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प्रेम




जुड़ते कैसे तार दिलों के, होता नहीं जहाँ कोई नाता,
अजनबी वो शक्स भला, फिर कैसे अपना है हो जाता।

जहाँ न हो उसका जिक्र, वो अफसाना न दिल को भाता,
नींद, ख्वाब, गीत और राग में, वही नजर फिर आता।

उसकी हसी, रुसवाई से, दिल का मौसम बदल है जाता,
पसंद, नापसंद उसकी से आगे, कुछ न मन को भाता।

सहलें लाख दर्द उस खातिर, भाव सिकन नहीं है आता,
उग आता पौधा खुद व खुद, बीज प्रेम बोया नहीं जाता।


- धरम चंद धीमान, हिप्र



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अहसान




एक घना बड़ा बरगद का पेड़,
टहनियां जड़ें थी जिसकी मजबूत,
जो अड़ा था विकट परिस्थितियों में,
शून्य से आया था आज शून्य में ही मिल गया।

मज़बूत जड़ें थी धरा को जकड़े हुए,
अपना और धरा से प्रेम संबंध बनाए हुए,
वक्त की चली आरी और कटा तना धरा से,
कितनों से जुड़ा नाता आज शून्य हो गया।

कितने ही पक्षियों का घरौंदा बिखरा,
पथिकों की छाया ठंडक विलुप्त हुई,
कितनों के हिस्से में उदासी की बदली छाई,
और कितनों दिलों में सूनापन छा गया।

कई पीढ़ियां थी शुक्रगुज़ार जिसकी,
हर पीढ़ी ने पाया दुलार असीम जिससे,
जब वक्त आया कि करें वफ़ा उसके साथ,
तब सबको वो अहसान से भर चला गया।


- राज कुमार कौंडल, हिप्र



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स्मृति





स्मृतियाँ समय की किताब के वे पन्ने हैं,
जिन्हें पढ़ते ही मन बीते क्षणों में लौट जाता है।


कुछ स्मृतियाँ आँसुओं की नमी बन बह जाती हैं,
तो कुछ जीवन की राह में दीपक-सी रोशनी बन जाती हैं।

वो पल, जो थम नहीं सकते पर छूट भी नहीं सकते,
हृदय की गहराइयों में सदा जीवित रहते हैं।

स्मृतियाँ ही तो हैं जो हमें अतीत से जोड़कर,
वर्तमान को जीने और भविष्य को सँवारने की प्रेरणा देती हैं।


- डॉ. सारिका ठाकुर 'जागृति'



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धूप



हमारे हिस्से की धूप
हम तक पहुँचेगी जरूर

बस थोड़ा इंतजार,
थोड़ा सब्र रहे।
छाँव की स्वीकार्यता हो
खुले दिल से
और अँधेरे से भी कोई परहेज न रहे।
हमारे हिस्से की धूप
लेकर आएगी
नव स्फूर्ति
नई चेतना
और नई ऊर्जा
बस अलसायी छाँव से
निकलने की कवायद
सच्चे दिल से हो।
उस अलसायी छाँव में इकट्ठा कर
अपनी ऊर्जा को
धूप की तपिश को सहने की
क्षमता बरकरार रहे।


- रूचिका राय



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प्रेम



तुम्हारे बदन से मेरी खुशबु छिपाओगे कैसे ?
खुद अपनी ही खुशबु से दूर जाओगे कैसे ?

तुम कहो तो मैं आजाद कर दूँ तुम्हें अपने प्यार से,
पर ये तो बताओ - बिना पंख उड़ पाओगे कैसे ?

तुम कहते हो कि बहोत बोलती हैं निगाहें मेरी,
मुझे मेरी ही निगाहें दिखलाओगे कैसे ?

बुझा दोगे हर शम्मा जो रोशन कर जाती हैं राहें ,
तो अँधेरों में लौट के घर आओगे कैसे ?

ढ़ाई अक्षर प्रेम का; गहरा दरिया-सा,
चंद लफ़्ज़ों में मायने इसके समझाओगे कैसे ?

हुनरमंद लगते हो; जरा हसना भी सीख लो,
उम्रभर गम से रिश्ता निभाओगे कैसे ?

कबूल हो 'चाहत है' तो सवाल हो हिज्र का,
यूँ बेबुनियाद किस्से मन्वाओगे कैसे?


- स्वाति जोशी, गुजरात



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दर्द




दर्द अगर न अपने देते,
जल नैनों में कैसे लाते।


रंग बिरंगे इन चेहरों पे
ढूढ न फिर अपने पाते।
दर्द अगर न अपने देते।
मनचाही दौलत चाहा प्यार
जीवन का यह सारा अभिसार
विन मांगे ही गर मिल जाते,
तो कैसे स्वप्न सलोने होते
दर्द अगर न अपने देते
जल नैनों में कैसे आते।


- रत्ना बापुली, लखनऊ, यूपी



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संगीत





मेरा नाम है बीना, सुरों से जुड़ी कहानी,
शायद वीणा से निकला हो ये सुरीली निशानी।

तारों की थरकन, मन की धड़कन में बसी,
संगीत में मिलती है जीवन की हँसी।

बचपन में माँ की लोरी ने मन को झुलाया,
दादी की गुनगुनाहट ने सुख का गीत सुनाया।
खेलों में भी सुरों ने रंग भर दिए,
हर आहट में जैसे गीतों के जिए।

यौवन में जब दुनिया ने चिंता के बादल छाए,
संगीत ने मेरे मन को हँसना सिखाए।
हर सुर में पाया मैंने सुकून का द्वार,
गीत बने मेरे जीवन का आधार।

और जब बढ़ी उम्र, तन थका, मन थम गया,
भजन की रागिनी से विश्वास फिर दमक गया।
ईश्वर के चरणों में सुरों का दीप जलाया,
हर स्वर में भक्ति का सागर लहराया।

संगीत है प्रकृति की अनोखी पहचान,
चिड़ियों की चहक, नदियों का गान।
हर हवा का झोंका कोई धुन सुनाए,
हर पत्ता लय में झूमता जाए।

संगीत मेरा प्राण है, मेरा स्वाभिमान,
इसमें ही बसी है मेरी पहचान।
क्योंकि मेरा नाम ही है बीना,
और बीना का अर्थ है सुरों की रानी सुरीना।


- बीना सेमवाल



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मिलन





शायद ही कुछ शेष बचे हैं,
दिन मेरे इस जीवन के
मन करता है जी भर जी लूं...

तेरी गोद में सिर रखकर अपना,

कह लूं अपने दिल की बातें
मिलन के वो पल मैं कुछ ऐसे जी लूं...

फिर से गठबंधन कर करके देखूं,

तेरे और अपने हाथों का,
तेरे कदमों की धूलि को
मैं अपने माथे पर ले लूं...

विचलित क्यूं हूं, कैसा डर है ?

आए हैं तो... जाना भी है
फिर भी थोड़ा खुलकर रो लूं...

मुश्किल होगा सब छोड़कर जाना,

हिम्मत रखकर मन बहलाना,
थोड़ा मैं भी भारी मन से,
तेरी आंखों के आंसू पी लूं...

रह जाएगा ख्वाब अधूरा,

प्यार अधूरा , साथ अधूरा
फिर भी कोशिश करती हूं कि
समय की उधड़ी तुरपन सी लूं...
मन करता है जी भर जी लूं...


- मंजू सागर, गाजियाबाद. यूपी



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विरह



तुम्हारा आना किसी दिवाली या
होली से कम नहीं है,
मैं जानती हूं तुम देश हित के लिए, तत्पर हो हमेशा,
इसलिए दूर होने का गम नहीं है,

विरह की वेदना सहना
मेरे जीवन का निरंतर सा किस्सा बन गया है,
जब आते हो मन प्रफुल्लित हो जाता है ,
तुम्हारा जाना मेरे विरह का हिस्सा बन गया है।


- रचना चंदेल 'माही'



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प्रेम



इस जनम में न सही
उस जनम तो मेरे होगे ना तुम ?


इस बार तो चुप ही रहे
उस बार तो कह लोगे ना तुम ?

मान लिया सब कुछ,
रह गए हम दूर,
सीखा, समझा, जाना
ये है दुनिया का दस्तूर
दे न पाए इस दफ़ा,
उस दफ़ा तो साथ दोगे ना तुम ?

जा रहे अब छोड़ सांसें
मेरे पीछे आहें भरोगे क्या तुम ?

इस जनम में न सही
उस जनम तो मेरे होगे ना तुम ?

पूरी न होगी ये तमन्ना
देखूं आखिरी आँखें तेरी
अबकी जब आँखें खुले
सामने मेरे होगे न तुम ?


- भाग्यश्री मिश्रा, राँची



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जिस्म




दुनियां है लोगों का मेला यहां है
हर आदमी बहुत अकेला।

सुख मिलता तो है दुनियां है साथ,
दुख आता तो आदमी है बहुत अकेला।

किसी के जिस्म की सुंदरता से प्रभावित होना बड़ी बात नहीं,
बात तो तब है जब आप किसी की रूह तक पहुंच पाओ।
किसी को गले लगाना कोई बड़ी बात नहीं,
बात तो तब है जब आप किसी के सुख-दुःख दोनों को गले लगा पाओ।

अनगिनत योनियों के बाद मिला मानव शरीर,
क्या फायदा अगर फिर भी मानवता ना दिखा पाओ!
खून के रिश्ते तो सभी निभाते हैं,
क्या फायदा इक बिना स्वार्थ का रिश्ता ना बना पाओ।


- रजनी उपाध्याय



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झोपड़ी




बांस, घास, मिटटी,पत्तों से बनी,
हमारी प्यारी सी ये झोंपड़ी,
थककर जब आए कहीं से,
स्वागत में बाहें फैलाती झोंपड़ी।

सुख, शांति स्नेह मिलता यहाँ, हर पल पलकें बिछा रहती खड़ी,
गर्मी , सर्दी, बरसात , दिन फिर या रात ,आश्रय देती झोपड़ी।

महलों से तो कहीं अच्छी है , कच्ची है देखने में ,पर सच्ची है बड़ी ,
अमीर गरीब का भेद न करती ,सबके लिए द्वार खोले झोंपड़ी ,
पंचवटी में लक्ष्मण , सीता संग , राम जी ने बनाई थी झोंपड़ी ,
प्रेमवश जूठे बैर खाने के बहाने ,भगवान् आये थे शबरी झोंपड़ी |


- लता कुमारी धीमान



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प्रेम




प्रेम श्वास की नीरवता है,
जो भीतर बहता है पर दिखता नहीं।



यह ज्वाला भी है, जो जलाए नहीं,
औषधि भी है, जो पीड़ा को जीवन बना दे।

प्रेम कोई संबंध नहीं-
यह आत्मा का विस्तार है,
जहाँ "मैं" और "तुम" विलीन हो जाते हैं।

यह मौन की गहराई में जन्म लेता है,
और अनंत की ओर बहता है।


- मधु शुभम पाण्डे



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पहाड़




शब्द नहीं, अटल अडिग कठोर,
न कहा न सुना, न कोई प्रतिवाद।


कर्म पथ पर निरंतर मौन और सत्य,
हृदय भरा सरस नदियों की धार।

आकाश से आंख मिलाता, वो शांत
स्थिर, नियंत्रित, निरहंकार।

कड़ी धूप, बर्फीली हवाओं ने लिखी
सहनशीलता की ढेरों कहानी।

टूटता है, बिखरता है, वो पहाड़ है
फिरभी, करीब जाके हर बार सुनी,
निःस्वार्थ प्रेम की प्रतिध्वनि...


- सुतपा घोष, दुर्गापुर, पश्चिम बंगाल



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मुस्कान





मुस्कान भी कितनी अच्छी होती है,
बच्चों की हो या हो किसी की भी।

दिल में दर्द भरा हो जितना भी,
मुस्कान उसे छुपा देती है।

किस्मत का मारा जो हो कोई,
मुस्कान उसे हौसला देती है।

तकदीर ने छीना जो सब कुछ,
मुस्कान तकदीर को भी औकात दिखा देती है।

जिंदगी में मुस्कुरा कर जीना जरूरी है।
एक मुस्कान ही तो है, जिस पर लोग सारा जहां लूटते हैं।
एक मुस्कान ही तो है जो दुश्मन को अंदर से जलाते हैं।


- अनुरोध त्रिपाठी, प्रयागराज, यूपी



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मोहब्बत



सनम तुम से यूँ मोहब्बत करके,
जी रही हूँ मैं यहाँ पर अब मरके।


मैं कह तो देती फ़साना अपना,
सहम जाती हूँ मैं जहाँ से डर।

बढ़ते जाते हैं सित्तम दुनिया के,
लोग थकते नहीं लेकिन करके।

तेरे ईश्क की मैं जोगन दिवानी,
पागल बनी मैं तुम्हें प्यार करके।

तुम में बना लूंगी मैं छाप अपनी,
एक रोज मोहब्बत के रंग भरके।

तुम हो ईबादत तुम हो 'उपासना'
तुमको ही चाहा है रहबर करके।



- डॉ० उपासना पाण्डेय, प्रयागराज, यूपी


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