साहित्य चक्र

29 September 2025

संस्मरण- शहद पानी में गिर गया

 

बात लगभग चालीस वर्ष पहले की है। मैं व मेरे पिताजी खेतों में अपने थ्रेशर से गेहूं की गहाई कर रहे थे। खेतो के साथ लगते नाले में कुछ पेड़ों पर जंगली मधुमक्खियाँ हर वर्ष बैठती थी।






हमने भी शहद निकालने की सोची। मैंने अपनी कक्षा के एक लड़के को नजदीक से शहद निकालते देखा था तथा मुझे सब याद था कि उसने क्या क्या किया था।रात को मैं और पिता जी शहद निकालने चल पड़े। मेरे एक हाथ में जलता हुआ उपला था जिससे धुआँ निकल रहा था तथा दूसरे हाथ में छुरी थी तथा पिता जी ने टॉर्च व तसला पकड़ रखा था जिसमें शहद निकालना था।

हिम्मत बटोर कर मैं पेड़ पर चढ़ गया तथा मधुमक्खियों को धुआँ दे दिया जिससे उन्होने शहद वाली जगह खाली कर दी। पेड़ एक ढलान पर था तथा उसके नीचे खड़े होने के लिए स्थान नहीं था। अत: पिता जी ने एक हाथ से पेड़ को पकड़ा व दूसरे हाथ पर तसले को थाम लिया जिससे शहद सीधा तसले में गिरे, लेकिन जैसे ही मैंने शहद से भरे छते को काटा तो शहद का एक बड़ा सा टुकड़ा तसले के किनारे पर पड़ा और तसला हाथ से छूट कर 50 फुट नीचे नाले में चला गया।


बचा हुआ शहद छते में से टिप टिप नीचे गिर रहा था। मैं पेड़ से नीचे उतरा और टॉर्च की रोशनी में नीचे नाले में उतरा। वहाँ देखा कि तसला पानी के ऊपर तैर रहा था लेकिन शहद पानी में चला गया था। हमारी सारी मेहनत बेकार हो गई थी !लेकिन फिर भी हमने कुछ शहद उस तसले में दोबारा इककठा कर लिया। मुझे बहुत हंसी आ रही थी। आज पिता जी तो नहीं हैं लेकिन उनके साथ बिताए वो पल बहुत याद आते है।


- रवीन्द्र कुमार शर्मा / बिलासपुर, हिप्र



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