बीते कुछ वर्षों में भारत में जिस हिसाब से पत्रकारों की हत्याओं के मामले सामने आए हैं, वह बेहद गंभीर, चिंताजनक और भारतीय लोकतंत्र पर कलंक है। कभी बिहार, कभी उत्तरप्रदेश, कभी छत्तीसगढ़ तो कभी झारखंड में और अब उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक पत्रकार की हत्या का मामला सामने आया है। आखिर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी ?
एक पत्रकार अपनी जान हथेली में रख कर जनता की समस्याओं और मुद्दों को हम सब के सामने लेकर आता है और हमें दिखता है कि हमारे समाज में कौन-कौन सी बुराइयां आज भी मौजूद है और कहां-कहां विकास पहुंचा है और कहां-कहां विकास इंतजार कर रहा है।
पत्रकारिता में कोई यूं ही नहीं आता हैं बल्कि देश के प्रति कुछ कर गुजरने का जुनून सवार होता है। मामूली सी वेतन में एक पत्रकार नौकरी कर लेता है। सिर्फ इसलिए क्योंकि उसे देश व बेहतर समाज का निर्माण करना है। पत्रकारों की ईमानदारी और कार्य कौशल राजनेताओं और पूंजीपतियों की हकीकत समाज के सामने लाती है।
ईमानदारी और निष्पक्ष पत्रकारिता एक पत्रकार के लिए तब खतरनाक हो जाती है, जब पत्रकार किसी नेता, उद्योगपति और प्रशासन के दबाव में नहीं आता है या पत्रकार को कोई खरीद नहीं पाता है। इसी कारण पत्रकार उन सभी को अपना दुश्मन बना लेता है जो उसे खरीदना चाहते हैं या दबाना चाहते हैं या फिर चुप करना चाहते हैं।
भारत को लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है या माना जाता है और इस सबसे बड़े मंदिर में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को नेताओं, उद्योगपतियों, बाहुबलियों और प्रशासन द्वारा आए दिन खोखला किया जा रहा है। एक भारतीय नागरिक और पत्रकार होने के नाते मुझे यह कहने में कतई शर्म नहीं है कि पत्रकारों की हत्याएं हमारे भारतीय लोकतंत्र पर कलंक है।
अब समय आ गया है कि राज्य और केंद्र सरकार को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए गंभीरता से सोचना चाहिए अन्यथा वह दिन दूर नहीं होगा जब पत्रकार भी अपनी सुरक्षा, हक और अधिकारों के लिए सड़कों पर आंदोलन करते नजर आएंगे।
- दीपक कोहली

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