खामोशी वह आईना है जिसमें दिल के टूटे हुए टुकड़े साफ़ नज़र आते हैं। जब कोई अपना हमेशा के लिए जुदा हो जाए, तो ज़िंदगी का हर रंग फीका पड़ जाता है और चारों ओर सन्नाटा बस जाता है। यह खामोशी शब्दों की कमी नहीं होती, बल्कि यह उन जज़्बातों की स्याही है जिन्हें बयां करने की हिम्मत हमारे पास नहीं होती है।
इंसान बोलना चाहता है, पुकारना चाहता है, पर होंठ जमे रहते हैं और आवाज़ दिल की दरारों में कैद हो जाती है। जुदाई का दर्द सिर्फ आँखों से गिरते आँसुओं का नाम नहीं, यह वह सूनापन है जो हर सांस के साथ भीतर उतरता चला जाता है। पहले जिन लम्हों में मोहब्बत की गूंज थी, वहाँ अब वीरानी का डेरा है।
खामोशी अक्सर हमें लिखने पर मजबूर करती है। यह बिखरे हुए अल्फ़ाज़ में वही तड़प ढूंढ लेती है जो दिल चीखकर कहना चाहता है। शायरी और कविता इस दर्द की वह भाषा बन जाते हैं जिसे दुनिया समझ सकती है। टूटा हुआ दिल जब काग़ज़ पर उतरता है, तो उसकी धड़कनें भी शब्दों में सुनाई देने लगती हैं।
जुदाई और खामोशी एक-दूसरे का सहारा हैं। जुदाई दिल को तोड़ती है और खामोशी उस खालीपन को अपने भीतर समेट लेती है। यही दोनों मिलकर हमें यह सिखाते हैं कि ज़िंदगी सिर्फ खुशियों का नाम नहीं, बल्कि दर्द और उम्मीद के संगम से बनती है।
- डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

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