साहित्य चक्र

29 September 2025

संस्मरण- सच्चा सफ़र


मेरे छोटे भाई का नाम विकास (विक्की) है, जो मुझसे 2 वर्ष छोटा है। यह बात फ़रवरी 2009 की है। शिक्षा विभाग में मेरी प्रथम नियुक्ति जनपद गोरखपुर में हुई थी। अतः मुझे नई दिल्ली से गोरखपुर की ट्रेन पकड़नी थी। मुझे पहली बार घर से दूर किसी अंजान शहर में रहना था। सारा परिवार मेरे सभी सामान की पैकिंग करने में लग गया। मेरे पास तीन बड़े और भारी बैग हो गए थे। जिनमें मेरे कपड़े, बिस्तर, छोटा गैस सिलेंडर, बर्तन तथा अन्य ज़रूरी सामान था। 





मेरा भाई विक्की मुझे सही सलामत ट्रेन में बिठाने के उद्देश्य से मेरे साथ स्टेशन तक आया। हमने गाज़ियाबाद स्टेशन से नई दिल्ली के लिए लोकल ईएमयू ट्रेन पकडी। उस दिन बदकिस्मती से नई दिल्ली स्टेशन से लगभग ढाई किलोमीटर पहले तिलक ब्रिज रेलवे स्टेशन पर ही ईएमयू ट्रेन को रोक दिया गया। हमें पता चला कि नई दिल्ली स्टेशन पर इंटरलॉकिंग का कार्य चल रहा है, इसलिए यह लोकल ट्रेन और आगे नहीं जाएगी। 

हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें। क्योंकि रात के समय बाहर आकर किसी अन्य साधन से नई दिल्ली आने में बहुत वक़्त लग जाता। जिससे मेरी गोरखपुर की ट्रेन छूट सकती थी। मेरी पहली नौकरी की चिंता में मेरे भाई ने प्लान बनाया कि पटरी पर ही बैग लेकर दौड़ लेते हैं। 

हमारे पास और कोई चारा नहीं था। विक्की ने अपने कंधे पर दो बैग लिए पर उसने मुझे एक ही बैग उठाने दिया। रात के अंधेरे में हम दोनों पटरी पर दौड़ते-दौड़ते, हाँफते हुए, ठंड में भी पसीने से लथपथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गये। कुछ ही देर में मेरी ट्रेन आ गई और मैं ट्रेन में चढ़ गया। 

मैंने खिड़की से अपने भाई के चेहरे पर मेरे लिए पूर्ण समर्पण और अपनापन देखा। अब मुझे मन ही मन यह चिंता सताने लगी कि ये वापस गाज़ियाबाद कैसे जाएगा। उसने कहा मेरी फिक्र मत करो, मैं घर पहुंच जाऊँगा। बस तुम वहाँ अपना ध्यान रखना। जैसे ही मेरी ट्रेन चलने लगी हम दोनों की आँखों से आँसू निकलने लगे। 

उस समय इतना ज़्यादा मोबाइल फ़ोन या इंटरनेट का ज़माना नहीं था परन्तु एक दूसरे के लिए सच्चा प्रेम कई गुणा अधिक था। आज जब मेरा भाई इस दुनिया में नहीं है, तब भी मेरी नज़रें उसे हर जगह तलाश करतीं रहतीं हैं।


                                        - आनन्द कुमार / गाज़ियाबाद, उप्र




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