साहित्य चक्र

14 July 2025

जातिवाद पर नरेंद्र सोनकर के दोहे




कहें गर्व-अधिकार से, नारी दलित यतीम।  
    नाम नहीं, नारा नहीं, नारायण हैं भीम।।

जन्म हुआ रे भीम का, खुशी महल-खपरैल।  
    शंखनाद है न्याय की, तिथि चौदह अप्रैल।।
                       
समता औ' सम्मान ही, संविधान की थीम।  
सृजित किए आंबेडकर, बोलो जय जय भीम।।
            
शिक्षित बनो संघर्ष करो, रहो संगठित और।
 चलो बुद्ध के राह पर, बनो राष्ट्र-सिरमौर।।

थी मानवता  के लिए , मनु की  नीति अफीम।
    खाक किए आंबेडकर, बोलो जय जय भीम।।

जनमानस कल्याण ही, है जिसका अस्तित्व।
  माने  उसके  ज्ञान  का, लोहा  सारा  विश्व।।

  प्रतिज्ञा बाईस भली, करे जगत कल्याण।
    हैं आंबेडकरवाद की, मूल मंत्र औ' प्राण।।

   बाभन बनिया वैश्य क्या, क्या कुर्मी कुम्हार।
      दुश्मन से लोहा लिये, पासी खटिक चमार।।

  मनु का ब्राह्मणवाद रे, जल-भुन हुआ अधीर।
      व्यासपीठ पर बैठ ज्यों, बाँचा कथा अहीर।।

  क्या क्रिसमस क्या लोहड़ी, क्या होली क्या ईद। 
     जाति निगलती आ रही, समता की उम्मीद।।

  क्या रिश्ता क्या बन्धुता, जाति गले की फाँस। 
       घुट-घुट कर अब जी रही, मानवता हर साँस।।

   शिक्षा है वो शेरनी, शब्द-अक्षर वो दूध।  
    पिये जो जितना ज्यादा, लंबा टिके वजूद।।

   तिल-तिल मरता रोज़ है, भूखा नंगा जान।
       जाति नहीं ये गोह है, चबा रही इंसान।। 

  खून माँस भी एक है, जाति योनि भी एक।
     फिर नरेन्द्र हैं क्यों नहीं, सभी आदमी एक ? 

  जिस मिट्टी के आप हैं, उसी मिट्टी के सूद।
     ब्राह्मण देवता बोलिए, क्यों अछूत हैं सूद ? 

वे नरेन्द्र पशुतुल्य हैं, क्या ब्राह्मण क्या सूद।
     अन्तस में जिनके नहीं, मानवता मौजूद।।

  ऊँच-नीच की भावना, छूआछूत का मैल।  
     शिक्षा निष्प्रभावी बनी, जाति-धर्म जड़ बैल।।


*****

क्या कबीर रसखान क्या, क्या रहीम रैदास।  
परिवर्तन आया नहीं, देश जाति का दास।।
       
क्या रहीम रैदास क्या, क्या कबीर क्या सूर।  
कहें सभी अच्छा नहीं, जातिवाद नासूर।।
  
 क्या ललई पेरियार क्या, क्या कबीर चार्वाक।  
    दिए चुनौती तर्क से, कटी ब्रह्म की नाक।।    

 दर्शन सच्चा  बुद्ध का, पंचशील  है  रीढ़।  
  समता करुणा शील से,बनती जग में पीढ़।।

कैसी श्रद्धा-भावना, कैसा व्रत-उपवास।  
    मानवता ही जब नहीं, पूजा नहीं परिहास।। 

 

                                       - नरेन्द्र सोनकर 'कुमार सोनकरन' 


1 comment:

  1. Anonymous14 July, 2025

    आदरणीय दीपक कोहली जी,
    संपादक – जयदीप पत्रिका,
    सादर प्रणाम।

    मेरे दोहों को “जयदीप पत्रिका” के माननीय मंच पर स्थान देकर आपने न केवल मेरी रचना को गरिमा प्रदान की है, बल्कि एक रचनाकार के मनोबल को भी उच्चतम स्तर पर पहुँचाया है। इसके लिए मैं हृदय की गहराइयों से आपका आभार प्रकट करता हूँ।

    आपकी पत्रिका आज के समय में उन विचारों की भूमि बन चुकी है, जहाँ संवेदना, सच्चाई और साहित्य – तीनों मिलकर सामाजिक चेतना को स्वर देते हैं। *जयदीप* ने जिस प्रकार युवाओं, हाशिए के स्वरों और सामाजिक यथार्थ को स्थान दिया है, वह अत्यंत प्रशंसनीय और प्रेरणास्पद है।

    मेरे जैसे एक साधारण रचनाकार के लिए यह अनुभव अप्रतिम है कि मेरी लेखनी को आपके जैसे सुधी सम्पादक के हाथों मान्यता मिली। यह सिर्फ प्रकाशन नहीं, एक विचारधारा को दिशा देने जैसा है।

    आपके अथक प्रयासों एवं हिंदी साहित्य के प्रति आपकी प्रतिबद्धता को सादर नमन।
    मैं भविष्य में भी अपनी रचनाएँ आपकी पत्रिका को भेजता रहूँगा और आशा करता हूँ कि आप पूर्ववत स्नेह बनाए रखेंगे।

    कृतज्ञ,
    **नरेन्द्र सोनकर 'कुमार सोनकरन'**
    इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, प्रयागराज
    मो. 8303216841
    ईमेल: naraina2001@gmail.com
    दिनांक: 14/07/2025

    ReplyDelete