चाहत है जीने की, पर मरना तो पड़ेगा,
सभी को इस दौर से, गुज़रना तो पड़ेगा।
नश्वर ये शरीर, मिट जाना है एक दिन,
परमात्मा के नाम इसे, करना तो पड़ेगा।
परवाह नहीं अपनी, अपनों की फ़िक्र है,
मौत से फिर भी हमें, डरना तो पड़ेगा।
हैं साँसे जब तलक, जी लो ये ज़िंदगी,
एक दिन अपनों से, बिछड़ना तो पड़ेगा।
जन्म हुआ जिसका, उसे जाना है ज़रूर,
जीवन की डोर को कभी थमना तो पड़ेगा।
ख़ामोश लबों से कौन, रोएगा तुम्हारे लिए,
आँसुओं को आँखों से निकलना तो पड़ेगा।
बीत रहें हैं हर पल, शाम-ओ-सहर मेरे,
संसार के इस नियम पर चलना तो पड़ेगा।
काँधे पर ही होगा, सफ़र आख़री हमारा,
चिता पर इस बदन को, जलना तो पड़ेगा।
बीत रहें हैं युग, सदियों से इसी तरह,
छोड़कर ये दुनिया, यादें बनना तो पड़ेगा।
- आनन्द कुमार

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