कहाँ जाते होंगे तेरे शहर से निकाले हुए लोग ?
भीतर ही से मर जाते होंगे तेरे शहर से निकाले हुए लोग।
गुरूर तेरी मदमस्त आँखें, दौलत तेरे होठों की हसी,
फिर किस बात पर इतराते होंगे तेरे शहर से निकाले हुए लोग?
ये ज़मी तेरी, आसमाँ तेरा, ये साँस भी, ये जिस्म भी,
खुद को कहां दफनाते होंगे तेरे शहर से निकाले हुए लोग?
सुबह खिलती तेरे शानो पर, शाम ढलती तेरी बाहों में,
फूटी क़िस्मत पर पछताते होंगे तेरे शहर से निकाले हुए लोग।
कहीं और तुझे ही ढूँढेंगे, कहीं और तेरा ही होगा चर्चा,
पुरानी यादों को दोहराते होंगे तेरे शहर से निकाले हुए लोग।
ना महफ़िलों में रौनकें, ना किताबों की सौंधी खुशबु कहीं,
कैसे मन बहलाते होंगे तेरे शहर से निकाले हुए लोग?
ख़ुदा से बिछड़कर; दर-ब-दर ठोकर खाने वाले अभागे,
खुद को फ़कीर कहलवाते होंगे तेरे शहर से निकाले हुए लोग!
- स्वाति जोशी
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इंतज़ार के पल।
एक पल बीते,लगे वर्ष हजार,
हर पल बढ़ती बेचैनी,
बढ़ती जाती तन्हाई और
रहता मन उदास,
ना जाने कैसे ये पल बीतेंगे,
छाएगी उदासी,या चेहरे फिर खिलेंगे,
दिखेगा पूनम का चांद या
फिर काले बादल घुमड़ेंगे।
होंगे अलविदा या फिर मिलेंगे।
मन कहे कुछ, धड़कन कहे कुछ और,
दिल कही न पाए कोई ठिकाना न की ठौर।
बेचैनी उलझाती जाए,
कोई इसे बताए, हर लम्हों को
रखो सहेज,
यही लम्हा बनेगा सुनहरा ,
कर लो इंतेज़ार,
इसके बाद ही आएंगी, जीवन में बहार।
- रोशन कुमार झा
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नयन छलक कर मुझसे बोले,
मन की पीर न कोई तोले।
अद्भुत होती माँ की क्षमता,
सुखद बहुत है उसकी ममता,
गोदी, लोरी, प्यारा आँचल,
नहीं भूलते सुख के झूले।
बीते दिन, बीती रातें,
टूट गई मन की सौग़ातें,
पीड़ाओं ने साथ निभाया,
खुशी नहीं दरवाजा खोले।
सजधज कर के ब्याह रचाया,
दिल को प्यार का गीत सुनाया,
पर दिल का यह सूना कोना,
दुख से भरे पड़े हर झोले।
जीवन का हर पल महकाया,
मन को प्रतिपल था चहकाया,
उसी को आँसू देकर हमने,
केवल दुख हिस्से में तोले।
पत्थर बनकर है रह जाता,
प्यार बिना मन सहमा जाता,
शब्द प्रीति के दूर भगाकर,
सुलगाते हम स्वार्थ के शोले।
- सरिता सिंह
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सर्वजीत सिंह 'बौबी'
लंगर है लगाता
बारह महीने बीमार व उनके तीरमदारो
को खाना है खिलाता।
वृद्ध आश्रम हो या हो अनाथालय
हर जगह ये सेवाएं जरूर पहुंचाए।
हर जरुरतमंद शुक्रिया भी है जताता
सर्वजीत के लिए दुआ भी है मांगता।
सराज में आई आपदा का भी
सहारा बना
चुपचाप राशन की गाड़ियां ,कंबल
और बर्तन यहां दिए पहुंचा।
पीड़ितों से मिलने भी जरूर आए
उनमें अपनापन भी जता गए।
पांच सौ परिवारों को
सवा करोड़ की राशि भी दे गए
प्रति परिवार के हिस्से में
पच्चीस हजार रुपए आए।
सेवा भाव जिनमें है होता
वो कोई कौम नहीं है देखता।
आपको देख लगा कि
हर घर ,हर गांव में एक सर्वजीत पैदा हो
जिनमें मानवता की सेवा के प्रति
जुनून और जज्बा हो।
ढाई अक्षर
ढाई अक्षर का नाम है "प्यार",
जिसमें बसता है सारा संसार।
न इसमें तर्क, न कोई द्वेष,
बस भावना, अपनापन और विशेष।
ना लिखा जाता ये सिर्फ किताबों में,
ना सिखाया जाता किसी पाठशालाओं में।
यह तो माँ की गोद में लोरी है,
यह तो बच्चे की पहली चोरी है।
यह साजन की चुप निगाहों में है,
यह बाँध लेता है बिना राहों के भी।
यह ढाई अक्षर जो कह न सका कोई,
वही सबसे गहरा अर्थ दे गया कोई।
इसमें त्याग है, सेवा है, ममता भी,
और कभी-कभी तो ईश्वर की सच्ची वंदना भी।
- डॉ. सारिका ठाकुर 'जागृति'
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मर्ज़ मत करो
बचपन जैसे छिन गया सारा,
स्कूल ही था संसार हमारा!
अज्ञानता का हम पर यूँ कर्ज़ मत करो,
गुरुजी... स्कूल हमारा मर्ज़ मत करो!
जब शिक्षा का अभाव होगा,
तो जीवन मेरा ख़राब होगा!
नहीं सुनना कोई बहाना, कुछ अर्ज़ मत करो,
गुरुवर... कृपया स्कूल हमारा मर्ज़ मत करो!
आपसे हाथ जोड़कर विनती है,
मैंने सीख ली सारी गिनती है!
ग़लतियों पर हमारी इतना ख़ुदग़र्ज़ मत बनो,
बस सर जी स्कूल हमारा... मर्ज़ मत करो!
हम ग़रीब बेसहारा बच्चे हैं,
पर दिल के तो हम सच्चे हैं,
हृदय में हमारे ऐसा दर्द मत करो,
डांट लो बेशक.. पर स्कूल मर्ज़ मत करो!
यहाँ बाबा-काका भी पढ़ते थे,
ख़ूब घर में चर्चा करते थे!
उनकी विरासत का अब हर्ज़ मत करो,
आप हमारे ज्ञानदाता..स्कूल मर्ज़ मत करो!
विद्यालय में पड़ा ताला है,
ये आदेश बड़ा निराला है,
नीतियों को इस तरह से तर्ज़ मत करो,
इन आँखों में आँसू हैं... स्कूल मर्ज़ मत करो।
- आनन्द कुमार
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सावन की बुदो ने मन को भिगो दिया है,
पेड़ों पर लगे झूले ,
उन पर बैठी प्रेमी प्रेमिका,
जैसे मानो कह रहे हो,
प्यार कितना खुशनुमा होता है,
दोनों एक दूसरे के आगोश में खो रहे हैं,
झूले की धीमे-धीमे रफ्तार,
मन को प्रफुल्लित कर रही है,
चारों तरफ हरियाली फैली है,
मन मयूर बन नाच रहा है,
प्रेमी प्रियतम एक दूसरे की आंखों में बात करने लगे,
सावन के झूलों के बीच,
कोयल की आवाज मां को भा रही है,
सावन के झूलों के संग,
हे प्रिय! सॉरी खुशियां हवा के साथ,
सावन की बूंद के संग हमारे पास आ जाए।
- गरिमा लखनवी
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वापस नहीं आते
कुछ लोग अपने
चले जाते हैं।
इतनी ख़ामोशी से
कि उनके जाने की आहट भी
कानों तक नहीं पहुँचती।
फिर हर रोज़
मन यही सोचता है।
क्या वे लौट सकते हैं?
क्या कभी उन्हें
फिर से देख सकेंगे
उन ही मुस्कानों के साथ?
लेकिन...
जो एक बार चले जाते हैं,
वो वापस नहीं आते।
उनकी बातें,
उनकी हँसी,
उनका साथ।
सब यादों की दीवारों में
टंग कर रह जाता है।
हम रोज़ दरवाज़े की
आहट सुनते हैं,
छत की ओर देखते हैं,
कभी किसी हवा के झोंके में,
कभी किसी पुराने गीत में
उनकी मौजूदगी तलाशते हैं।
लेकिन वक्त के इस सफर में
बस उनकी यादें लौटती हैं,
वो खुद।
वापस नहीं आते।
उनके बिना उगता सूरज
अब भी रश्मि बिखेरता है,
ज़िंदगी की गाड़ी
रुकती नहीं।
मगर
मन का कोई कोना
हमेशा खाली रह जाता है,
क्योंकि
जो वास्तव में चले गए।
वे कभी
वापस नहीं आते।
- डॉ. मुश्ताक अहमद
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कैसे कह दूँ रे मालिक, सुन्दर यह संसार,
शूलों ही संग क्यों होती, फूलो का अभिसार।
दीप जो जलती है सदा, देने को आलोक,
उसी के नीचे क्यों है रहता घोर अँधकार।
वृक्ष जो देती हैं हरदम ,मधुर फलों का वाग,
क्यों उसी को सहना पड़ता प्रस्तर का प्रहार।
दूब जो लाती हरियाली, उपवन के हर छोर,
क्यों वह कुचली जाती है , पग से बारम्बार ।
माना कितने घर यहॉ ,जहॉ भूख का राज,
कुछ घरों मे क्यो होता, रोटी का अपकार ।
धुआं धुआं सा लगता है, हमको यह संसार
दूषित हुई इसकी वायु, जीना है दुश्वार।
क्यों व्याकुल है रत्न तू ,जग की यही है रीत,
शुभ व अशुभ भरा हुआ है, जग के इस भंडार।
- रत्ना बापुली
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मैंने तुम्हे चाहा,
बिना किसी शर्त,
बिना किसी अधिकार...
बस वैसे ही,
जैसे सुबह चाहता है सूरज को,
पर रोक नहीं पाता उसे ढलने से।
तुम मेरी दुआओं का हिस्सा हो,
पर उन दुआओं का नहीं,
जो अधूरे ख्वाबों की तरह बुझ जाए,
बल्कि उन दुआओं का ,
जो बिना कहे भी मुकम्मल होती है।
मैने तुम्हे चाहा ,
जैसे कोई बच्चा हवा में पतंग छोड़ दे,
और फिर उसी आसमान में उसकी उड़ान
देख मुस्करा दे..
बिना यह सोचे कि वो लौटेगी या नहीं।
मेरा प्रेम इकरार नहीं,न कोई दावा ,
ना कोई शिकायत...
बस एक एहसास है,
जो मेरी सांसों में घुला है,
एक संगीत, जो मेरे शब्दों में बस है,
एक रोशनी, जो मेरी आंखों में चमकती है।
- विकास कुमार शुक्ल
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