साहित्य चक्र

02 July 2025

देहरादून के अर्जुन कोहली जी की चार कविताएँ पढ़िए


लेखक- अर्जुन कोहली


पहली कविता

आज की पीढ़ी की मजबूरी है,
बुजुर्गों को साथ रखने की हिम्मत नहीं है।
समय की कमी, जीवन की भागदौड़,
बुजुर्गों की देखभाल करने का समय नहीं है।

परिवार की जिम्मेदारी, नौकरी की व्यस्तता,
बुजुर्गों को समय देने की गुंजाइश नहीं है।
तेजी से बदलते जीवन की गति,
बुजुर्गों की धीमी गति को नहीं समझ पाती।

लेकिन क्या यह सही है?
क्या यह हमारी संस्कृति के अनुरूप है?
बुजुर्गों ने हमें पाला, हमें बड़ा किया,
उनकी देखभाल करना हमारा कर्तव्य है।

आओ हम बुजुर्गों का सम्मान करें,
उनकी देखभाल करने का प्रयास करें।
उनके अनुभवों से सीखें, उनकी बातों को सुनें,
और उनके साथ समय बिताने का आनंद लें।

*****


दूसरी कविता

वृद्धजन हमारी धरोहर हैं,
जीवन के अनुभवों की खान हैं।
उनकी दहलीज पर ज्ञान की किरणें हैं,
जीवन के रहस्यों को समझने की कुँजी हैं।

उनकी आँखों में बसी कहानियाँ हैं,
जीवन के उतार-चढ़ाव की गवाह हैं।
उनके हाथों में अनुभव की रेखाएँ हैं,
जीवन की सच्चाई को बयान करती हैं।

वृद्धजन हमारी धरोहर हैं,
उनका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है।
उनकी बातों को सुनना और सीखना हमारा धर्म है,
उनकी देखभाल करना हमारा फर्ज है।

वृद्धजन की विरासत हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है,
उनके अनुभवों से हम जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
उनकी आशीर्वाद और प्यार से हमारा जीवन संवर जाता है,
वृद्धजन हमारी धरोहर हैं, उनका सम्मान करना हमारा परम कर्तव्य है।

*****


तीसरी कविता

बुजुर्गों की दुर्दशा, एक दर्दनाक कहानी,
जिसमें बुढ़ापे की मजबूरी और अकेलापन है।
एक समय था जब वे परिवार के मुखिया थे,
अब वे घर के कोने में, अकेले पड़ गए हैं।

उनकी आँखों में आंसू, उनके दिल में दर्द,
उनकी बातों को कोई नहीं सुनता, कोई नहीं पूछता।
वे अपने बच्चों के लिए जीते थे, अब वे अकेले हैं,
उनकी जरूरतें, उनकी इच्छाएं, कोई नहीं समझता।

उनके अनुभवों की कद्र नहीं, उनकी बातों का सम्मान नहीं,
वे बस एक बोझ बनकर रह गए हैं, जिनसे छुटकारा पाना है।
लेकिन क्या यह सही है? क्या यह इंसानियत है?
बुजुर्गों की दुर्दशा, एक ऐसी समस्या है
जिसका समाधान हमें ढूंढना होगा।
और उनकी दुर्दशा को दूर करने का प्रयास करें।
आओ हम बुजुर्गों का सम्मान करें,
उनकी देखभाल करें, उनकी बातों को सुनें।
उनके अनुभवों से सीखें, उनकी जरूरतों को समझें,

*****


चौथी कविता

हम सेवक हैं, हम साथी हैं,
बुजुर्गों की सेवा में लगे हैं।
उनकी जरूरतों को समझते हैं,
उनके दर्द को महसूस करते हैं।

हम उनके साथ बैठते हैं,
उनकी बातों को सुनते हैं।
उनके अनुभवों को जानते हैं,
उनकी कहानियों को समझते हैं।

हम उनकी देखभाल करते हैं,
उनकी जरूरतों को पूरा करते हैं।
उनके चेहरे पर मुस्कान लाते हैं,
उनके दिल को खुशी से भरते हैं।
हम सक्ष्म हैं, हम सक्षम हैं,
बुजुर्गों की सेवा में लगे हैं।
हम उनका साथ देते हैं,
उनकी जिंदगी को आसान बनाते हैं।
हमारा प्रयास है, हमारा लक्ष्य है,
बुजुर्गों को सम्मान दिलाना।
उनकी जरूरतों को पूरा करना,
उनके दिल को खुश रखना।


- अर्जुन  कोहली

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