साहित्य चक्र

21 July 2025

कविता- सेराज का दर्द




बाँट लो सेराज का दर्द
सेराज में
आसमान से बरसी है आफत
कुदरत ने दिए हैं
कभी ना भूलने वाले जख्म
भयंकर जलसैलाब ने
उजाड़ दिया गांवों को
बाढ़ और भूस्खलन से
गांव बने मलबे का ढेर
लोगों के आशियाने लूट गए
अपनों को भी खो दिया 
अब ना उनके सर पर छत है
ना कुछ खाने को है
 ना कुछ पीने को है
          बाँट लो सेराज का दर्द
चंद रोज पहले
सब कुछ था उनके पास
 हर सुख था 
हर सुविधा थी
अब उनके पास कुछ नहीं
 सिर्फ लाचारी है
घर बन गए हैं खंडहर
कहीं-कहीं तो हो रही 
पलायन की तैयारी है 
          बाँट लो सेराज का दर्द
दोस्तों बयां कर रहा हूं
सेराज का दर्द
करना चाहता हूं
आप सबसे एक विनम्र आग्रह
दिल खोल कर करो 
सेराज के लोगों की मदद
यही है इस वक्त 
सच्ची इंसानियत
यही सच्ची मानवता हमारी है
          बांट लो सेराज का दर्द


                                                     - प्रवीण कुमार



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