साहित्य चक्र

12 July 2025

सात लेखिकाओं की सात मधुर रचनाएँ



उमड़ घुमड़ कर बादल आए,
ज़ोर ज़ोर से उमड़ घुमड़ के।

पानी पानी है धरती सारी,
घर आंगन भी पानी पानी।

बादल बिजली कौंध कौंध के,
हर कोई कांपे ज़ोर ज़ोर से।

विकराल रूप धरा है नदी नालों ने,
घर खेत खलिहान सब बह गए हैं।

बच्चे अपनी कागज की नाव चलाते,
भीग भीग के सबको रिझाते और चिढ़ाते।

बरखा रानी जब भी आती,
सुख दुख का अहसास दिलाती।


- सुमन डोभाल काला


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आज बरसा दोगे क्या ?
सूखी सी ज़मीन,
बूंद बूंद को तरसा दोगे क्या?
आज बरसा दोगे क्या ?
काला घना अंधियारा सा
हवाएं पर ठहरी सी
फिर भी जाने कहां से, कहां को
बवंडर चली दोपहरी की,
इस भारीपन पे, खालीपन पे
थोड़ा सुकून बरसा दोगे क्या ?
आज आँखें भर सी आईं हैं
छलक ही जाएंगी
नजरें सबकी मुझ पर
ये बूंदें यूं सबके आगे
पर बरस न पाएंगी
न छुपाया जाता है अब,
इनकी खातिर
आज बरसा दोगे क्या ?

- भाग्यश्री मिश्रा

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सावन है मनभावन
घुमड़- घूमड़ कर आ रहे मेघा न
जाने कौन सी बात बतियानी है,
यह सच है कि सावन, शिव और
पानी की तो अमिट- अतुलित कहानी है,
सावन जो आया मानों धरती पर जनजीवन को
चिलचिलाती गर्मी से एक राहत सी मिल गई,
आज तो 'माही' का मन भी प्रफुल्लित है-
दूर सीमा पर खड़े प्रियतम की यादों में
अधरों पर मुस्कान की इक कली सी खिल गई,
बच्चे, बूढ़े और जवान सबको
सावन तो खूब लुभाता है ,
बारिश, झूलों-फूलों का यह मौसम
सबके मन को हर्षित कर जाता है,
बूढ़े-सूखे तरुओं में भी अब
नई सी उमंग लहरा रही है,
पेड़ों से आलिंगन कर रही लताएँ,
मानों प्रियतमा के मन को चिढ़ा रही हैं,
बेशक, अब ना वह मिट्टी का आंगन है,
और ना ही कागज की वो नाव है,
किंतु सावन तो है मनभावन,
यही सब के मन का भाव है।

- रचना चंदेल 'माही'

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मेरी गलतियों को मुझसे अवगत कराए,
सही गलत का फर्क मुझे सदा समझाए,
नही नफ़रत का भाव रखे कभी दिल में,
गुरू ही सदा सच्ची राह हमें दिखलाए।
गुरू अँधेरों में रोशनी बनकर हैं आते,
भटके हुए विचारों को सही राह दिखलाते,
जीवन के उतार चढ़ाव से परिचय करवा,
गुरू ही सदा मन में विश्वास जगाते।
गुरु के बिना ज्ञान की कल्पना अधूरी,
गुरु ही न हो तो शिक्षा कैसे हो पूरी,
गुरू ही सदा हमारी क्षमताओं को नापते,
गुरु सदा समझे जीवन की मजबूरी।
गुरु ब्रह्म है ,गुरु शिव है, गुरु जीवन सार हैं,
गुरु से ही सीखते हम जीवन व्यवहार हैं,
गुरु के आगे नतमस्तक हो सदा ऋणी रहे,
गुरू की कृपा ही जीवन का आधार है।

- रूचिका राय


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जीवन में गुरु सा भला,
दिया कौन है ज्ञान।
प्रथम गुरु हैं मात-पिता,
दूजा विद्या दान।
गुरु जीवन को सरल बनाते,
भले -बुरे का फ़र्क बतलाते,
सत्य मार्ग पर चलते रहना,
धर्म कर्म हरदम तुम करना।
मूरख को विद्वान बनाएं,
वेदों का सब सार बताएं,
ग़लती पर फटकार लगाकर,
ठीक करें सब कुछ समझाकर।
गुरु चरणों में मस्तक रख लो,
सेवा में यह जीवन कर दो,
गुरु को देवों ने भी पूजा,
गुरु सम ना कोई है दूजा।
ज्ञानी वह जो ज्ञान सिखाए,
भटके को जो राह दिखाए,
जीवन का हर सबक पढ़ाते,
समझो वह भी गुरु कहलाते।।
गुरु सिर पर धर दीजिए,
अपने दोनों हाथ।
धर्म मार्ग पर चलुॅं सदा,
रहना हरदम साथ।

- रिंकी सिंह

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हे प्रभु, हमें ऐसा जीवन दो"

हे प्रभु, हमें ऐसा जीवन दो,
जिससे ,जग में उजियारा हो।
हर मन को हम बाँटें,स्नेह
हर पथ पर दीप हमारा हो।।

हम न जियें बस अपनी खातिर,
परहित में मुस्काएं हम
औरों के आँसू पोछ सकें,
इतने कोमल बन जाएं हम।।

मन में हो श्रद्धा, कर्म में शक्ति,
और वाणी में सच्चाई हो l
लोभ, अहं से दूर रहें हम,
दिल में बस अच्छाई हो।।
हर दिन अच्छा काम करें,
हर दुर्गुण हमसे दूर रहे ।
नफ़रत से नाता नहीं कोई,
प्रेम हृदय भरपूर रहे l
जो भी मिले, उसे गले लगाएँ,
हो रंग-जाति का भेद नहीं।
कण- कण में ईश्वर जाने हम
समता का मंदिर बने यहीं
हम दीप बनें अधियारो में,
कभी न सच से हटने पाएं।
जिन राहों पर चलें कभी हम
औरों को भी वह दिखलाएं।


- सरिता सिंह


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मोहब्बत की दुनिया में बस दो ही कहानी है,
कभी लव पर हंसी है तो कभी आंखों में पानी है।
मोहब्बत-

जो अपना है उसे अपना कह नहीं सकते,
बसे जाते हैं दिल में वह जिसकी कल रवानी है।
मोहब्बत-

कोई कैसे बताए अपनी दिल की बेचैनी,
बुढ़ापा तन पे छाया है मन में मगर जवानी है।
मोहब्बत-

रोटी की चाह ने रौदा मोहब्बत की दुनिया को,
उन्हें कैसे बताएं कि यह कैसी पशेमानी है।
मोहब्बत-

टूटे हुए दिल की सदां देख लो इसमें,
ग़जल है कि है शेर कि यह नुक्ता चीनी है।
मोहब्बत-

ढूंढते ही रहो ता उम्र रत्न मगर नहीं मिलता,
मोहब्बत की न कोई यहां मुकम्मल निशानी है।


- रत्ना बापुली


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