साहित्य चक्र

19 July 2025

कविता- नज़र नज़र में फर्क





नज़र नज़र में होता है फ़र्क बहुत
कोई नज़रें होकर भी है अंधा
देखकर भी कर देता है कोई अनदेखा
दुनियां में सब मतलब का है धंधा

मां की नज़र में है ममता ही ममता
पिता की नज़र में त्याग है बसता
ज़माने की नज़र में है स्वार्थ नज़र आता
प्यार का दिखावा करके पीठ पीछे से है डसता

नज़रें भी कई बार खा जाती हैं धोखा
कई बार सच नहीं होता जो है नज़र आता
सच्चाई कुछ और होती है
आदमी धोखा है खा जाता

नज़रें किसी से जब होती हैं चार
मिलने को दिल हरपल रहता है बेकरार
नज़रें ही जब बुढ़ापे में दे जाती हैं धोखा
देख नहीं पाते हो जाता चलना दुश्वार

नज़र अच्छी है तो सब अच्छा है लगता
बुराई में भी अच्छाई नज़र है आती 
नज़रें यदि थोड़ी भी हैं खराब
तो अच्छाई में भी बुराई है दिख जाती

नज़र भी कई बार खा जाती है धोखा
इसलिए दिमाग का करना इस्तेमाल
दुनियां की हर शय में अच्छाई देखना
यह भी तो है हमारी नज़र का कमाल


                                  - रवींद्र कुमार शर्मा


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