साहित्य चक्र

27 February 2022

काव्य खंडः "एक गुफ्तगू जिंदगी से" का लोकार्पण

राजस्थान के उदयपुर में लोक जन सेवा संस्थान की ओर से महाराणा भोपाल सिंह जी की जयंती के मौके पर पांच दिवसीय समारोह का आयोजन किया गया।

समारोह के चौथे दिन राजस्थान विद्यापीठ के आईटी सभागार में आयोजित प्रतिभा सम्मान समारोह के अवसर पर विमल शर्मा की अध्यक्षता और मुख्य अतिथि 108 श्री श्री वैभव दास जी महाराज विजयपुर, चित्तौड़गढ़, विशिष्ट अतिथि लेफ्टिनेंट जनरल एन के सिंह राठौर जी, सीजी गॉडविन रडार, सरकार विश्वराज सिंह जी की मौजूदगी में श्रीमती नूपुर बासु और श्रीमती रंजना मजूमदार द्वारा संकलित संपादित साझा काव्य संकलन "एक गुफ्तगू जिंदगी से" का लोकार्पण किया गया।






इस पुस्तक की समीक्षा डॉक्टर करुणा दशोरा जी द्वारा की गई है। इस अवसर पर श्रीमती उमंग सरीन, पदमा पगारिया, राजकुमार बैरवां आदि लोगों द्वारा काव्य पाठ किया गया। 


इस समारोह में विविध क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले 36 महानुभावों का सम्मान किया गया। संपूर्ण देश से आयी प्रतिभाओं के साथ-साथ शहर के सम्मानित काव्य प्रेमियों, साहित्यकारों के सानिध्य में उक्त कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस लोकार्पण समारोह का संचालन उदयपुर की जानी-मानी कवयित्री श्रीमती सुनीता निमिष सिंह द्वारा किया गया।


26 February 2022

यौन अपराध और रेप जैसी घटनाओं पर रोक कब ?

जिस तेजी से हमारे देश में यौन अपराध और रेप, महिला उत्पीड़न इत्यादि घटनाएं हो रही है। उससे एक बात का अंदाजा साफ-साफ लगाया जा सकता है कि हमारा देश महिला उत्पीड़न और यौन अपराध जैसी घटनाओं के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है। आज हम एक आधुनिक दुनिया में है और कई तकनीकी चीजों से हम परिपूर्ण हो चुके हैं। इसके बावजूद भी हमारे भारतीय समाज में महिला उत्पीड़न और हिंसा जैसी घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही है। 


यह विषय हम भारतीयों के लिए बेहद सोचनीय और विचारणीय है। महिला उत्पीड़न और हिंसा का शिकार अशिक्षित और घरेलू महिलाएं ही नहीं बल्कि पढ़ी लिखी और शहरों में रह रही महिलाएं भी हो रही। हर रोज अखबारों में रेप, महिला हिंसा और उत्पीड़न खबरें छपी है। कभी आरोपी को देश का भविष्य बता कर छोड़ दिया जाता है तो कभी आरोपी की जाति देखकर रिहा कर दिया जाता है। 


इतना ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर एक दूसरे के धर्म की महिलाओं का रेप, अहिंसा और उत्पीड़न करने जैसी धमकियां हर रोज पोस्ट होती है और सोशल मीडिया पर महिलाओं को गंदे गंदे कमेंट और इनबॉक्स में आकर गंदी गंदी फोटो इत्यादि भेज कर परेशान किया जाता है। सोशल मीडिया का जितना हमारे समाज में अच्छा प्रभाव नहीं हुआ है, उससे अधिक हमारे समाज में सोशल मीडिया का बुरा प्रभाव हुआ है। सोशल मीडिया के कारण कई महिलाओं ने अपनी जान दी है और कई महिलाओं का यौन शोषण और मानसिक शोषण हुआ है।



हमारे देश में महिला उत्पीड़न जैसी घटनाओं पर भी जाति, धर्म की राजनीति की जाती है। जहां ऊंची जाति के किसी महिला के साथ रेप या यौन उत्पीड़न जैसी घटनाओं पर पूरे देश में आक्रोश और न्याय की आवाज उठती है, तो वही किसी मुस्लिम और अन्य जाति धर्म के महिला के साथ रेप जैसी घटनाओं पर सन्नाटा पसर जाता है। आखिर हमारे देश और समाज का एक जैसी घटना पर यह दोहरा चरित्र क्यों ? 


एक सुरक्षित राष्ट्र का निर्माण तब तक नहीं हो पाता है, जब तक वहां की महिलाएं अपने आप में पूर्ण रूप से सुरक्षित महसूस ना करें। हमारे देश में महिलाओं में भी धर्म, जाति का भूत इस प्रकार से सवार है, जिसका आप और हम अंदाजा तक नहीं लगा सकते हैं। कई महिलाएं धर्म और धार्मिक मान्यताओं के कारण अपने पति या पुरुषों का अत्याचार चुपचाप सहती रहती है और कई महिलाएं दूसरे धर्म, जाति की महिलाओं के लिए फेसबुक व अन्य सोशल मंच पर खूब गन्दी गन्दी गालियां और नफरत फैलाती रहती है। 


महिला उत्पीड़न और यौन उत्पीड़न जैसी घटनाओं के लिए सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी जिम्मेदार है। हम सभी लोगों को यौन उत्पीड़न और महिला उत्पीड़न जैसी घटनाओं के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए, तभी हम एक अच्छे समाज और राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं अन्यथा आज किसी दूसरे की मां, बहन, बेटी शिकार हो रही है तो कल को आपका और हमारा नंबर भी आ सकता है। 





आइए महिला उत्पीड़न और यौन हिंसा जैसी घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाकर अपने समाज में जागरूकता फैलाते हैं। 'नर-नारी हम सब समाज के अधिकारी' के नारे के साथ शपथ लेते हैं कि हम अपने घर और आसपास में हो रहे महिला उत्पीड़न और हिंसा इत्यादि घटनाओं पर आवाज उठाएंगे और समाज को जागरूक करेंगे। 


हमारे और आपके द्वारा उठायी गई आवाज से ही सरकार और सत्ता में बैठे लोगों के कान खुलेंगे, जिससे सख्त कानून बनेंगे और आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा होगी। बस हर महिला उत्पीड़न, हिंसा इत्यादि घटनाओं पर आवाज उठाते रहिए।


हिंदी की पांच कविताएँ एक साथ पढ़िए

।। पहली रचना ।।

 लगता है तुम आ रहे हो।




खुशबू का यूं फिजाओं में बिखरना...
ओंस की बूंद का मोती बन ठहरना..
लगता है अब तुम आ रहे हो।

सर्द हवा और बारिश का बरसना...
मुरझाए पौधो में फूलों का खिलना..
लगता है अब तुम आ रहे हो।

बरसाती शाम और सावन का महीना..
गुनगुनाती धूप और शाम का ढलना..
लगता है तुम आ रहे हो।

दिल में उमड़ रहे जज्बातों का थमना..
आंखो से आंसू का बहना..
लगता है अब तुम आ रहे हो।

होठों पे मेरी मुस्कुराहट का उभरना..
धड़कनों का तेजी से धड़कना..
लगता है अब तुम आ रहे हो।


                                             लेखिकाः सोना मौर्या 



।। दूसरी रचना ।।


जनता जाए भाड़ में


देशभक्ति की आड़ में
कुछ लोगों ने अपने लिए जुटाई
सारी सुख-सुविधाएं,
बाकी बची जनता सब वस्तुओं पर
टैक्स भर-भरकर
झोंकती रही खुद को भाड़ में।

राष्ट्रवाद की आड़ में
कुछ लोगों ने अपनी तानाशाही
सबके ऊपर चलाई,
बाकी बची जनता आपस में
लड़-झगड़कर
झोंकती रही खुद को भाड़ में।

जनसेवा की आड़ में
कुछ लोगों ने सिर्फ धनिकों के लिए
हितकारी नीतियां बनाई,
बाकी बची जनता अभावों से
निपट-निपटकर
झोंकती रही खुद को भाड़ में।

धर्म-रक्षा की आड़ में
कुछ लोगों ने इंसान-इंसान के बीच
जमकर नफरत फैलाई,
बाकी बची जनता उसकी आग में
जल-जलकर
झोंकती रही खुद को भाड़ में।


                                 लेखकः जितेन्द्र 'कबीर'


।। तीसरी रचना ।।


मैं



काश मैं भी होती
एक पुस्तक की भांँति तो
पढ़कर समझ पाती अपने गुजरे हुए कल
आने वाले वर्तमान और भविष्य से
और सुधार पाती मैं अपनी
गलतियों को अतीत के पन्नों से
काश मैं भी होती एक पुस्तक की भांँति...

समझ पाती अपनी वर्तमान की परिस्थितियों को
और गढ़ पाती अपने स्वर्णिम भविष्य को
काश मैं भी समझ पाती उन रिश्तों को
जो कहने को तो अपने हैं पर बस कहने को
और समझ पाती अपने लिए उनके विचारों को
काश मैं भी होती एक पुस्तक की भाँति...

कुछ सीख लेती यदि मैं अपने
गुजरे हुए कल और वर्तमान से
तो सरल, सहज और व्यक्तित्व विकास के लिए
गढ़ लेती अपने लिए एक सुंदर भविष्य को
काश मैं भी होती एक पुस्तक भाँति...

                             लेखिकाः डॉ.सारिका ठाकुर "जागति"



।। चौथी रचना ।।


अंतिम मित्र



सुनो! अपने मित्रो की सूची में 
मेरा नाम अंतिम पंक्ति में रखना
मेरे नाम के बाद कोई नाम ना हो।
भगवान ना करे कभी तुम्हें
कोई परेशानी घेर ले ,और 
दूर-दूर तक कोई उम्मीद की 
किरण नज़र ना  आये।
जब सब अपनो को 
तुम परख लो।
तब तुम बेझिझक हक से
मुझको याद करना।
अपनी अंतिम उम्मीद के साथ 
 मुझको याद करना।
 मेरा वादा है
 एक दोस्त का दूसरे दोस्त से 
 तुम को मैं कभी 
निराश नहीं करूंगा ।
तुम्हारी तकलीफों , परेशानियों को
 अस्त कर , मैं तुम्हें
 नया सवेरा , नई किरण देने का 
प्रयास करूंगा , पूरा पूरा प्रयास करूंगा।

                               लेखकः कमल राठौर साहिल



।। पाँचवी रचना ।।


रंग बिरंगी होली आयी




रंग -बिरंगी देखो आज होली है आयी,
सबके चेहरे पे आजखुशियां है लायी।
सब बच्चों को होलीआज खुब है भारी,
सुबह से  शुरू हो हमारी जाती होली।
भक्त प्रहलाद की बात  याद है  आयी,
अवगुणों पर  गुणों की  जीत फरायी।
इन रंगों ने प्रेम स्नेह की गंगा हैं बहायी,
खुशियों की सुबह है आज देखो आयी।
रंगों के रंग में सजी दुनिया आज सारी,
बच्चें बुढ़े सब कर रहे होली की तैयारी।
काव्य सम्मेलन की सज गई महफ़िल,
सब मिलजुल कर बनो प्यार से होली।
नफरतों को भुलाकर सबने मिस्री घोली
पिचकारी लिए निकल पड़े सारी मंडली
छुन्नु मुन्नू की टोली आज हुई  मतवाली,
देवर भाभी जी  संग करें आज ठिठोली
रंग बिरंगी देखो आज  होली  है  आयी,
देवर भाभी जी संग खुब होली  खेली।
रंग बिरंगी देखो आज होली है  आयी,
सबके चेहरे पे आज खुशियां है छायी।।


                                           लेखिकाः कुमारी गुड़िया गौतम



22 February 2022

कविताः हृदय की झंकार सुन




तुझ में कौशल, हो जा निपुण,
सतर्क रहकर लक्ष्य को चुन,
ललकार की है, तुझ में एक धुन,
हृदय की झंकार सुन

एक नया सा, तुझ में जुनून,
साथ में भी रख सुकून,
समय का तू कर ना खून,
हृदय की झंकार सुन

जिंदगी रंग बिरंगा ऊन,
एक नया सा ख्वाब बुन,
हर सपने को कर दे तू पूर्ण,
हृदय की झंकार सुन

मधुर सी ध्वनि, तुझ में करे गुनगुन,
खुशनुमा सा, तू एक शगुन,
बेशुमार तुझ में है गुण,
हृदय की झंकार सुन

तुझ में कौशल, हो जा निपुण,
सतर्क रहकर अपनों को चुन,
ललकार की है, तुझ में एक धुन,
हृदय की झंकार सुन


                       लेखिकाः डॉ. माध्वी बोरसे


कविताः गृहणी




बहुत कड़वा है यह अनुभव, सोच और सच्चाई का।
दोष  किसका है यहां पर, केवल अपने आप का।
सब को सुला कर सोना, सबसे पहले जागना।
सबको खुश रखना पर अपना ही ध्यान न  रखना।।

सास ससुर पति और बच्चे बस परिवार को संभालना।
फरमाइशें पूरी करते,अपने अरमानों को कुचलना।
कर रही हूँ हद से बढ़ कर, नहीं है जिसका कोई मोल।
घर में उसको कौन चुका सकता , जो है पूर्णतः अनमोल।।

तभी तो कहा गया है 
सम्पूर्ण गृह है जिसका ऋणी।
वही तो कहलाती है गृहणी।


अर्चना लखोटिया

21 February 2022

कविताः बसंत




फूलों में खिलखिलाहट हुई 
पत्तों ने ली अंगड़ाई 
रंगोली प्रकृति ने बिछाई 
वस्त्रों से धरा ढँक आयी 
बसंत की रुत आयी 

वृक्षों ने परिधान बदले 
इंद्रधनुष सी छठा बिखराई 
पतझर से मुक्ति दिलाई 
प्रियतम की याद दिलाई
बसंत की रुत आयी 

मन की डाली हिलने लगी 
झरने लगे उदासी के शूल 
खिलने लगे आशाओं के फूल 
नैनों ने विरह टीस बिरसाई  
बसंत की रुत आयी 

मुस्कुराई हूँ दर्पण देख 
नैनों में भीनी चमक है आई 
मन मृग बन कर डोल रहा है 
तन मन में चाय तरुणाई

क्या तुम आये हो?
मन ने प्रश्नों की झड़ी लगायी 
फिर तुम्हारी छवि दिखाई 
मधुर आवाज कानों ने सुनाई 

बसंत  की रुत आयी 


                                      लेखिकाः वंदना जैन


साहेब! हम आपके लिए फ्री काम करेंगे।



साहेब पत्रकारिता की है और फ्री में काम करने के लिए तैयार भी हूॅं। 4 साल की डिग्री और 1 साल का डिप्लोमा लिया है। करीब ₹600000 खर्च किए हैं। इसके बावजूद भी कोई फ्री में काम कराने को तैयार ही नहीं है। साहेब आप हमें इंटर्नशिप करवा दीजिए। इंटर्नशिप से ही मैं अपने परिवार को पा लूंगा। मेरा परिवार थोड़ी ना है मुझे तो मीडिया का आई कार्ड चाहिए। अपने फेसबुक वॉल पर मुझे आपकी कंपनी का एंप्लॉय दिखना है। मैं दिन-रात या कहे 24 घंटे काम करने को तैयार हूं। सैलरी तो मुझे चाहिए ही नहीं, क्योंकि मैं इंसान नहीं हूं।







अरे शर्म करो मीडिया और पत्रकारिता के नाम पर अपनी दुकान चलाना बंद करो। कितने लोगों का और शोषण करोगे ? अगर औकात नहीं है यूट्यूब चैनल या न्यूज़ चैनल या मीडिया संस्थान या अखबार चलाने की तो फिर इसे बंद क्यों नहीं कर देते ? जो बच्चे 4 साल पढ़ाई और ₹4-600000 खर्च करके मीडिया की पढ़ाई करते हैं क्या वो बच्चे इंटर्नशिप करने के लायक भी नहीं हैं ?


एक बच्चा कितने महीने इंटर्नशिप करेगा मुझे यह बताइए ? 2 महीने या 6 महीने, मेरे अनुसार मीडिया का काम सिर्फ 1-2 महीने में सीखा जा सकता है चाहे वह पीसीआर का काम हो या एमसीआर का काम हो या आउटपुट का काम हो या फिर इनपुट का काम हो। हाॅं..! शब्दों की नॉलेज या शब्दकोश धीरे-धीरे ही बढ़ता है। आप सोचेंगे कि कोई इंसान 1 महीने में या 2 महीने में पूरे शब्दकोश को अपने दिमाग में रटा ले तो मुझे लगता कि यह संभव नहीं है।



पत्रकारिता का कोर्स करने से अच्छा है। दो ढाई लाख रुपए में आप अपना खुद का बिजनेस स्टार्ट करें। जितना आप 4 साल में पत्रकारिता का कोर्स करेंगे, उतना आप 4 साल में अपने बिजनेस में मास्टर बन जाएंगे। यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि पत्रकारिता में लगातार नौकरियां कम होती जा रही है। अगर नौकरियां है भी तो वह सिर्फ मीडिया संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारियों के रिश्तेदारों को ही मिलती हैं। या तो फिर खुद का यूट्यूब चैनल, फेसबुक पेज व सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म पर मंच तैयार कीजिए। तभी आप अपने जीवन में कुछ कर पाएंगे अन्यथा मीडिया सेक्टर में जीवन को बेहतर बनाना बहुत कठिन और संघर्ष भरा है। आपको अपने जीवन में संघर्ष और कठिनाइयों से लगातार लड़ना है तो मैं आपको सिर्फ इतना ही कहूंगा कि आप पत्रकारिता कर लीजिए। 



नोट- मेरा इस आर्टिकल के माध्यम से किसी का मनोबल तोड़ने का मकसद नहीं है। बस मीडिया संस्थानों की हकीकत और मीडिया कर्मियों के हालात बताना है।



                                                             लेखकः दीपक कोहली


20 February 2022

कविताः बेटी





 सावन में डाली का झूला है बेटी।
उपवन में खिलता गुलाब है बेटी।
उगते हुए सूर्य की लाली है बेटी।

सन्ध्या में दिया बाती है बेटी।
आसमाँ में टिमटिमाता तारा है बेटी।
रसों में श्रृंगार सी होती हैं बेटी।
अलंकारों में उपमा सी होती हैं बेटी।

माता पिता की आन है बेटी।
भाई की राखी का मान है बेटी।
उदासी में उल्लास का संचार है बेटी।

गम की हर दवा का उपचार है बेटी।
बेटियों से ही घर की पहचान होती है। 
एक,दो नही ये तीन कुलों की आन होती है।

धन्य है वह माता पिता 
जिनके घर में बेटियो का हुआ पदार्पण।
बेटियों जितना भला कहाँ मिलता है समर्पण।


                          लेखिकाः अर्चना लखोटिया


कविताः रंग बिरंगी होली




रंग बिरंगी आज देखो  होली है आयी,
सबके चेहरे पे आज  खुशियां है छायी।

चाहूं ओर देखो कैसी हरियाली हैआयी,
सबने मिलकर देखो आज धूम मचायी।

सबको ये  होली  खुब है आज भायी,
राम रहीम के बंधे बने आज हमजोली।

एक दुजे संग देखो खेले आज है होली,
नफ़रत भुलाकर सब मिलते आज गले।

इन रंगों की तो बात है सबसे निराली,
जिसके आते भुल जाते सब अपने बैर।

रंग बिरंगी आज  देखो  होली है आयी,
सबके चेहरे पे आज  खुशियां है छायी।

हरा ,नीला ,पिला ,लाल ,गुलाबी, नारंगी
इन्द्रधनुषी रंगों की बौछार आज छायी।

एक -दुसरे संग करते हैं आज ठिठोली,
छुन्नु मुन्नू की देखो कैसी निकली है टोली।

रंग बिरंगी रंगों से भारी है सबने पिचकारी,
मिठाई से भी मीठी है आज सबकी बोली।

गोपियों संग रास रचाये आज गिरधारी,
इन्द्रधनुषी रंगों में जनता हुई मतवाली।

रंग बिरंगी आज देखो होली है आयी,
सबके चेहरे पे आज खुशियां है छायी।


                              लेखिकाः कुमारी गुड़िया गौतम


कब जागेगा व्यक्ति में दायित्व का बोध ?

अधिकारों की आंच में बेदम होता दायित्व, उम्मीद ही एकमात्र सहारा

  आज हम हर तरफ देखते है कि हर कोई व्यक्ति अपनी आमदनी और औकात बढ़ाने में लगा है। हर कोई व्यक्ति अपनी शक्ति और सामर्थ्य से अधिक से अधिक अधिकारों का सेवन करने में लगा है। जिसके सहारे वह अधिकांश मामलों में धन-दौलत, सत्ता-शक्ति, वैभव-शौहरत आदि-आदि को प्राप्त करना चाहता है। ऐसा भी नहीं है कि इस दिखावे और भोगवादी दौर में ईमानदार व दायित्व-बोध वाले व्यक्ति नहीं है। लेकिन ऐसे दायित्व-बोध वाले लोगों की संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है तथा वर्तमान की अंधी-दौड़ में ना तो उनकी छवि जन तक पहुंच रही है और न हीं उनकी प्रेरणादायी व प्रभावी वाणी। दायित्व-बोध से कोसों दूर हो रहे इस दौर में हर कोई अधिक से अधिक सुख-सुविधा, ऐशो-आराम, बेहिसाब सम्पति की चाह रखता है और वह अंधा होकर उस पूर्ति में दिन-रात लगा रहता है।






  अब ऐसा लगा रहा है कि समाज में हर प्रकार की व्यवस्था में ईमानदारी, सच्चाई, दायित्व, निष्ठा जैसे आदर्श धीरे-धीरे घटते जा रहे। हमारे राजनीति, प्रशासन, शिक्षा, चिकित्सा सहित तमाम व्यवस्थाओं और महकमों में लगे एवं पहुंचे लोग स्वयं को सुरक्षित मान अपने दायित्वों को भूलते जा रहे हैं तथा अपने पद व रसूख के सहारे चांदी कूटने में लगे हैं। 

भ्रष्टाचार, बेईमानी, धोखाधड़ी जैसे शब्द आज हमारे जीवन में आम होते जा रहे हैं। राजनीति में लोकतंत्र के सहारे जनता द्वारा जनता के लिए चुने गए नुमाइंदे तो ऐसा लगता है कि वे अपने दायित्व-बोध को भूल ही चुके हैं। अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपनों को दे, जिसकी लाठी उसकी भैंस जैसे मुहावरों को रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बनाते जा रहे हैं। वर्तमान में अधिकारों की आंच में दायित्व सच में बेदम होता जा रहा है। हर तरफ मात्र अधिकारों को लेकर लड़ाई-झगड़ा, दंगा-फसाद है। ठीक इसके उल्ट देखे तो दायित्व को लेकर आज दिन तक एक भी झण्डा हवा में नही लहराया। सबको अधिकारों की पड़ी है। दायित्व से किसी को कोई लेन-देन नही है।

  अब शायद यही लगता है कि अपने दायित्व को अपना लक्ष्य बनाने वाले व्यक्ति कम होते जा रहे हैं या यूं कहें कि दायित्व-बोध वाला दौर हम से काफी दूर जा चुका है। लेकिन इस बात की उम्मीद भी बेमानी नहीं होगी कि हम सब में अपनी-अपनी स्थिति एवं व्यवस्थाओं के अनुरूप कभी ना कभी दायित्व का बोध होगा तथा पुनः वह स्वर्णिम दौर लौटेगा जिसमें हम सब भ्रष्टतंत्र से दूर होकर आजादी के दीवानों व सेनानियों की कल्पना के अनुरूप जन-जन का भला कर सकेंगे तथा स्वयं को हर आईने में बेझिझक देख सकेंगे। हम सब में फिर से अधिकारों के उस पार दायित्व का बोध जगेगा और हम दायित्ववान बनेंगें। यही एकमात्र उम्मीद सुनहरे सवेरा की सुनहरी किरण है।



                                             लेखकः मुकेश बोहरा अमन


17 February 2022

कविताः नेत्रदान




माँ ये कितनी सुंदर है न फिर तुम
              इसे क्यूँ दान कर रही हो भला
विज्ञापन नेत्रदान का देख मैंने
              कौतूहलवश माँ से था पूछा
जीवित रहती है कोशिकाएंँ
           कुछ क्षण भर मृत्यु पश्चात भी
भर सकती हैं रंग खुशी के
            नेत्रहीन के नीरस जीवन में भी
नेत्रदान है महादान जगत में
            प्रण इसका गर जो मानव करे
अंधेरे स्पर्श कर अपूर्ण जीवन में
            सुंदर सपनों का इन्द्रधनुष बिखरे
शरीरभंग मृत्यु पश्चात....भ्रम है
              ........  बस एक पूर्ण अज्ञान है
दधिची ने तो जीवनरत हीं
               त्यागा अपना संपूर्ण शरीर है
तब वो त्याग न्यायसंगत
               वेदसंगत था जो फिर भला
आँखों का दान मृत्युपश्चात
                देहभन्ग है कैसे बताओ ज़रा!
आँखें हैं उपहार स्वरूप मिले हमें
                चलो न खुशियां बांटते हैं
मरने के बाद भी जीवित रहे ये
                नेत्रदान दे गरिमा मानव की रखते हैं।


                                         लेखिकाः सारिका ठाकुर "जागृति"


कविताः प्यार





प्यार से प्यारा अहसास कुछ नही है,
तुमसे प्यारा इस जहा मे कोई नही है,
हर पल तेरी याद मुझको तडपाती है,
हर वक्त तेरी बाते मुझको रुलाती है,
तुमसे दूर रहना बहुत मुश्किल है,
तुमसे बाते करना बहुत अच्छा लगता है,
कुछ ख्वाब अधूरे से लगते है,
उन ख्वाबो को तुम्हारे साथ पूरा करना है,
रात की चांदनी बहुत खूबसूरत है,
उसकी शीतलता तुम्हारी याद दिलाती है,
प्यार बहुत खूबसूरत अहसास है,
उन प्यारी यादो का अहसास अभी जिन्दा है,
प्यार से प्यारा अहसास कुछ नही है।


                             लेखिकाः गरिमा लखनवी


कविताः दोगला व्यवहार




गायों से नहीं चाहे हमने बछड़े
और स्त्रियों से लड़कियां,
दोनों के प्रति हमारे समाज का
अघोषित सा दुराव रहा है,
 क्योंकि धन-संपत्ति घर में 
आने के अवसर ज्यादा हैं
बछिया और लड़कों से,
इसलिए बछड़ों और लड़कियों से ऊंचा
उनका यहां स्थान रहा है।

कहने को भगवान की देन 
कहते हैं बच्चों को सब
लेकिन मन्नतों में लड़के ही मांगने पर
लोगों का ज्यादा ध्यान रहा है।
आती हैं ज्यादातर लड़कियां बिन मांगे ही
इसलिए तो दांव पर हमेशा 
उनका सम्मान रहा है।

समाज के नियम रहे हैं ज्यादातर
लड़कियों के लिए दुखदाई ही,
उनके अपने घर में ही उनका दर्जा
बराए एक मेहमान रहा है,
पाला-पोसा जाता है उन्हें पराए धन 
के तौर पर आज भी
उनके कन्यादान करके मां-बाप का
पुण्य कमाने का अरमान रहा है।

जरूरी दोनों हैं दुनिया में 
वंश-वृद्धि के लिए यह जानते हैं सब
लेकिन फिर भी लड़कों से ही
कुल बढ़ाने पर सबका अधिमान रहा है,
समानता का राग अलापते जरूर हैं हम
मगर एक समाज के तौर पर
अक्सर दोगला हमारा व्यवहार रहा है।


                              जितेन्द्र 'कबीर'