।। आओ हमसब एक हो जायें ।।
आओ हमसब एक हो जायें
एक ही संगठन मे पुनः जुट जाये
बिखराव मे रहकर अब फायदा नही
हानि हुई है, देख लो हमारा कही न कही
संगठन के बिखरते ही सब कमजोर हुए है
हमारे सभी कार्य बाधित ही हुए है
फायदा तो कुछ हमारा हुआ नही
अनमोल वक्त बीता,ये बाते है सही
जब एकता के सूत्र मे बंधे थे?
हमारे एक हुंकार से,वो हमे बुलाते थे
लेकिन जैसे ही हमसब बिखराव हुए
उसे हमारे कमजोरी के अनुभव हुए
तभी तो वो हमारे साथ मनमानी किए
जो मुफ्त मे मिलना था,उसमें वो नियम लगाए
अब भी कठिन से कठिन नियम रोज बनाते हैं
उम्र के इस पड़ाव मे बेवजह सताते है
आवाज तो विरोध का उठाते हैं अभी भी
लेकिन हमारे मांग को वो सुनते है ना कभी
ऐसे वक्त मे हमारे संगठन की एकता
--ही दिला सकती है हमारी सफलता
निवेदन है सबो से हाथ जोड़कर
वापस आ जाओ सब पुरानी बातो को छोड़कर
एक एक कर एकता का अहसास करा दो
संगठन एक है,एक रहने का विश्वास दिला दो
विश्वास ही नही,पूर्ण विश्वास है मेरा
सबके मनोरथ होंगे अवश्य पूरा
कहावत मे भी, सत्य एक उक्ति है
साथ रहो,एकता मे शक्ति है
आह्वान चुन्नू कवि का दिल से सब अपनाए
आओ हमसब पुनः एक हो जाए
- चुन्नू साहा
कलह मन से जुदा हो
नफरत भी अलविदा हो
जीवन जियो निष्छल प्रेम से
मानव पे मानव दिल फिदा हो
न मेरी न उसकी पूरी हो मुरादे
मन से मन सबका सदैव जुड़ा हो
जीवन की शैली जितनी हो सुलझी
जीने में उसको मजा ही मजा हो
मंत्र "नरेंद्र" खुशियों का रिश्तों में अपनों का
बंधन का धागा प्रेम से बंधा हो
बंधन का धागा प्रेम से बंधा हो...
- नरेन्द्र सोनकर बरेली
।। दौर ।।
वो छब्बीस थी,
इंतजार सताईस का था,
वो दौर मौज मस्ती का था,
ये दौर ज़ोर अजमाइश का था।
कहतें है इंतजार का फल मीठा होता है,
जो होता है वो ठीक ही होता है,
दिल यहां से जाने को भी नही कर रहा है,
पर एक वो भी है जो हमें बुला रहा है।
वो दौर अपनी मन मर्जी का था,
जब दो को वहां जाना हुआ था,
ये दौर उत्सुकता वाला है,
जब एक को यहां आना हुआ है।
ये दौर दौर की बात है,
हर दौर का अपना मज़ा है,
हम हर दौर को गौर से जीते हैं,
बस यूं समझिए हम वो है
जो पानी को भी अमृत समझ के पीते हैं।
- डॉक्टर जय महलवाल
।। कलयुग ।।
कलयुग में न कोई राम जन्मा,
न जन्मी अभी कोई सीता है।
धर्म की रक्षा की खातिर
न आए अभी तक कान्हा है।
दुष्टों के नरसंहार की खातिर
न दिखे हैं परशुराम कहीं।
फैली दरिद्रता मिटाने को
न करें है कर्ण सा दान कोई।
अधर पर लटके पशुओं की सेवा में
न दिखे है कृष्ण सा ग्वाल कोई।
बंजर होती धरती की खातिर
न किया भागीरथ सा ताप कोई।
सच्चाई की अलख जगाने को
न दिया बुद्ध सा उपदेश कोई।
क्षमा का पाठ पढ़ाने को
न जन्मा यहां महावीर कोई।
अधर्म, लोभ, पाप, पाखंड में
तृप्त दिख जाते है रावण कई।
पृथ्वी को नर्क बनाने में लगे है
शकुनी और कंस कई।
कलयुग को सफल बनाने में
सफल हुए है दानव कई।
- धीरज 'प्रीतो'
।। ज़िंदगी से शिकायतें ।।
किससे बाँटू दुख अपना
किससे करूँ हिकायतें,
ऐ ज़िंदगी सुन तो ज़रा
तुझसे हैं बहुत शिकायतें।
खुशी अभी तक दिखी नहीं,
किस्मत सही से लिखी नहीं,
ईमानदारी कहीं भी बिकी नहीं,
बताओ पढूँ मैं कौन सी आयतें?
संवर जाये मेरा पूरा जीवन
दूर हो जायें सारी शिकायतें।
कभी तो आएगा शुभ मुहुर्त,
मिल जाये जो इतनी शोहरत,
पूरी हो जाये दिल की हसरत,
और बदलनी हैं थोड़ी सी आदतें,
जिससे कर ना सकूँ कभी भी
संघर्ष भरी ज़िंदगी से शिकायतें।
धन दौलत हो मेरे पास,
बन जायूँ मैं भी सबका ख़ास,
यही तो लगाई है मैंने आस,
कि सभी लें मेरी हिमायतें,
काश जल्द ही समाप्त हो जायें
मेरे दिल की सारी शिकायतें।
कहे कबीरा और रसखान,
चेहरे पर हो सदा मुस्कान,
हो ना पाये बड़ा नुकसान,
कोई दे दे ऐसी हिदायतें,
कुछ तो भला हो मेरा भी
फिर करूँ ना कोई शिकायतें।
पास में हो सुख और चैन,
सुकून भरे हो दिन और रैन,
भीगे ना कभी आँसुओं से नैन,
अब ना हों झगडों की पंचायतें,
चमक जाये मेरा भी सितारा
खत्म हो जायें ज़िंदगी से शिकायतें।
- आनन्द कुमार
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