साहित्य चक्र

10 August 2023

कविताः पहली बारिश



वो पहली बारिश सावन की
तन मन मेरा भिगा गई
नाच उठा मन मयूर सा मेरा
तपन हृदय की मिटा गई

रिमझिम रिमझिम सी बूंदें वो
याद प्रियतम की दिला गईं
जब जब गिरी गात पर मेरे
एहसासों में हलचल मचा गई

सिहर उठे जज़्बात मेरे सारे
मादकता नयनों में छा गई
स्पंदन बढ़ गया धड़कनों का
मस्ती अंग अंग में समा गई

नन्हीं बूंदें उस सावन की
मायने उल्फत के बता गई
शायद थी ख़ास वो पहली बारिश
प्यार मुझे जो करना सिखा गई

                                            - पिंकी सिंघल



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