साहित्य चक्र

14 August 2023

आज़ादी जानों की कीमत




लाखों ने जानें देकर,
आज़ादी को हासिल किया।
फिर आज़ाद भारत को,
अपने ही राज्यों ने शरमिन्दा किया।

कभी जला पंजाब,
सालों से कश्मीर सुलगता रहा।
मणिपुर-हरियाणा भी अपनों से लड़ता रहा।

लाखों ने जानें देकर,
आज़ादी को हासिल किया।

क्यों.... आज़ादी की कीमत को,
आज़ादी पाने वाले जान नहीं पायें।
जिस लिए देश को काटा।
उसी बात पर अब भी बंटते आयें।

लाखों ने जानें देकर,
आज़ादी को हासिल किया।
फिर आज़ाद भारत को,
अपने ही राज्यों ने शरमिन्दा किया।

अपनों से लड़ -लड़ तिरंगे को लाल करते आये।
भारत मां को अपने ही सपूत शर्मसार करते आये।

मत लड़ो आपस में पहचानों आज़ादी की कीमत।
घाती दुश्मन को फिर ना देनी पड़े जानों की कीमत।

आपसी मतभेदों से देश का कोना -कोना मत सुलगाओ।
'सोने की चिडिय़ा' भारत को विश्व में स्वर्णित तुम कर जाओ।।


                                - प्रीति शर्मा 'असीम'



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