हमने जबसे कर ली काले बादलों से दोस्ती
हम न डरते कर जो ली है बिजलियों से दोस्ती
टूटते दिल के ये ज़ख़्मों के निशां देते पता
हमने कर ली बेख़ुदी में घायलों से दोस्ती।
जो बदलती रूख ये पागल सी हवा चलती ज़रा
क्यों न करते दौड़ती सी आँधियों से दोस्ती।
आरज़ूओं को मुकम्मल करने जो है निकले हम
राह में आती हुई सब मुश्किलों से दोस्ती।
जबसे काँटों के दर्द को हमने हँस कर सह लिया
हमने कर ली चुभ रहे इन नश्तरों से दोस्ती।
ढूँढतें थे हम तो महफ़िलमें वो रहब़र ना मिले
हार के हम करते अब उन रहजनों से दोस्ती।
प्रीत को अब मज़हबों से क्या ही करना चल चलें
ख़ुश है हम भी करके यूँ अब का़फ़िरों से दोस्ती।
- हरप्रीत कौर
No comments:
Post a Comment