साहित्य चक्र

14 August 2023

शीर्षक- फांसी का दिन




फांसी के दिन मां राम प्रसाद बिस्मिल को मिलने जेल जाती है तो जेलर राम को मां से मिलाने को बाहर लाता है। राम के पीछे से दोनों हाथों में लोहे की जंजीर और हथकड़ी बंधी होती है। राम सीना फुलाए बड़े फख्र से मां के पैरों में अपना शीश झुकाते है और मां उसको उठाती है और गले लग जाती है अपने लाल से कहती है कि तुमने मेरी कोख को धन्य कर दिया मेरे राम...

और मां के आखों में आंसू छलक आते है मां तुरंत आंसू पोंछ लेती है तो राम प्रसाद बिस्मिल मां को बोलते है मां तुम्हारे आखों में ये आंसू क्यों है ?

तो मां कहती है बेटा मैं नहीं रो रही हूं ये आंसू तो इसलिए नहीं है कि तुझे फांसी हो रही है ये आंसू तो इसलिए है कि मुझे आज अपने दूध पे गर्व हो रहा है ये आंसू तो इस लिए है राम जब आज फांसी हो जाएगी तो इस देश की सैकड़ों माएं भी अपने अपने पुत्रों को इस देश पर न्योछावर करने को भेजेंगी...

और मुझे आज इस बात का पछतावा है कि मेरे पास न्योछावर करने के लिए कोई और दूसरा पुत्र नहीं है मेरे लाल और मां फफक फफक कर रो पड़ती है और राम की भी आंखों में भी आंसू आ जाते है...

इतने में उनका मिलने का टाइम खत्म हो जाता है और सिपाही राम प्रसाद बिस्मिल को लेके जाने लगते है जैसे जैसे राम दरवाजे के पास पंहुच जाते है तो मां जोर से चीख पड़ी मेरे बेटे राम.... और मां आखों में गर्व के आंसू लिए वापस घर लौटने के लिए रास्ते लग जाती है....

राम प्रसाद बिस्मिल को हिंदुस्तान का बच्चा बच्चा जनता है उनको अंग्रेजों द्वारा फांसी पर लटका दिया था उनकी उम्र बहुत छोटी थी.... अपने देश पर शहीद होकर उनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया और वह युगों युगों तक अमर हो गए।


राम प्रसाद बिस्मिल अमर रहे, धन्य है वो मां जिन्होंने ऐसे लाल को जन्म दिया।

जय हिन्द...

                                               - सुमन डोभाल काला



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