साहित्य चक्र

14 August 2023

सोने की चिड़िया




कैसे कह दूँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया गाती है ?
कदम कदम हो रही लहूलुहान भारत की छाती है।।

बदरंग हो रही तस्वीर है, उतरा उतरा हर चेहरा है,
सिर्फ कौवों की काँव काँव है कोयल कहाँ गाती है ?

बंजर जमीं हो रही सफ़र में जलती रेत है,
प्यास कंठ में चटकती भूख बावली हो बिललाती है।

सत्ता के सिर पर बैठकर कर रहे कैसी रहनुमाई है,
सच पर गला बैठ जाता है पर झूठ पर गाल बजाती है।

सिर्फ बातों में अंतिम व्यक्ति की ही चर्चा है,
सारे मालपुए पहली ही सफ़ में बंट जाती है।

रहनुमाई का गुरूर सातवें आसमान पर चढ़ बैठा है,
पहले नजर नहीं आती गर नजर आये तो गुर्राती है।

थामकर जिनको बैठाया वही थाली खींच रहे,
अब तो उनको देख भूख भी थर्राती है।

बेबस वैद है बरबस हाथ मीज रहा विकास ,
दवा वही दे रहा जो मरीज को भाती है।

                                                        - राधेश विकास


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