साहित्य चक्र

04 August 2023

कुमार सोनकरन की सुंदर मुक्तकें





01.
खुचड़ की खोपड़ी में निंदा होने के सिवा और क्या है
घुट घुट कर जीने में जिंदा होने के सिवा और क्या है 
हैवानियत इंसानियत की उतार रही सरेआम आबरू,
अपने हैसियत में शर्मिंदा होने के सिवा और क्या है
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02.
स्याही के कतरे से लहू का कतरा जुदा नही होने दूॅंगा
असत्य की परछाई को सत्य का ख़ुदा नही होने दूॅंगा
सच्चाई की वकालत में चाहे हो जाए सर कलम नरेन्द्र,
पर किसी भी कीमत पर 'कलम बेजुबां' नही होने दूॅंगा
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03.
शिक्षा से संघर्ष की गाथा लिखता वही परिंदा है
अनुशासन-संस्कार का जिनके पड़ा गले में फंदा है
खुद पर जितना गर्व था हमको हम भी उतना राम नही थे,
बाहर पुतले जला रहे थे अंदर रावण जिंदा है
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04.
सारे जहां में एक हसीन-सी सूरत नजर आई
यानी तिरंगे में  मां भारती की  मूरत नजर आई
भरी चंदन की  खुशबू से  है हिंदुस्तान  की माटी
नहीं तुलना में इसके हूर कोई खूबसूरत नजर आई 
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05.
मेरे नज़रों में समता का पावन संविधान है
पूरी दुनिया में भारत का अलग स्थान है
कभी गलती से भी मेरी जुबां फिसल नही सकती,
मेरे लफ़्ज़ लफ्ज़ में हिंदी और हिंदुस्तान है
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06.
मां भारती के माथ पर बिंदी सुशोभित है
है प्राणवान आज भी जिंदी सुशोभित है
अर्श में है जिस मानिंद सुशोभित चंद्रमा
उसी तरह पूरे विश्व में हिंदी सुशोभित है
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07.
लफ्ज़ लफ्ज़ में नाही का परिणाम बुरा होता है
अध्ययन में कोताही का परिणाम बुरा होता है
जलो मगर दीपक-सा यारों ईर्ष्या-ऊर्ष्या मत पालो
ईर्ष्या में गुनाही का परिणाम बुरा होता है
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08.
हर ज़ख्म का मरहम बन मैं टांका सिऊंगा
इंसानियत के हित में हलाहल भी पिऊंगा
चाहे लाख छर्रे-गोली तुम दाग दो सीने में,
मैं परहित के परमार्थ में जीता हूं जिऊंगा
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09.
लहर नही कि फिज़ा नही कि हवा नही है
रे! कौन कह रहा मेरा अब जलवा नही है
जलन जो रखते हैं मुझसे हो उन्हें मुबारक,
उनके इस दु:ख-दर्द की कोई दवा नही है
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10.
क्या  फरक़  पड़ता  है  कपड़ा-ओढ़ना से
कोई छोटा दिखाएं या बड़ा आलोचना से
होगी जिगर-काबिलियत मुझमें अगर तो,
दुनिया को झुका दूंगा मैं हुनरो-अना से
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11.
अभिव्यक्ति का माध्यम है जो भावों की
व्यथा  बांचती  रूखी-सूखी  गांवों  की
भूखे प्यासे मुफलिस का जो दर्द बांट ले,
वो कलम नही मरहम होती है घांवों की
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12.
जग का सारा तम हर लूं मैं रवि नही हूॅं
हुं में हूं की परछाई का छवि नही हूॅं
रखता हूं मैं धार बराबर कलम में अपनी,
लिखता हूं भावनाओं को पर कवि नही हूॅं
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13.
कौन हो परिचय इस भांति पूछते हैं? 
कहां तक कितनी है ख्याति पूछते हैं?
लेते हैं खैर-खबर; हाल चाल बाद में, 
मिलते ही लोग अब जाति पूछते हैं
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14.
मर मिटे हमारे ही पगों पर और सिहाएं
दुनिया  हमारे हुनर  को हमीं से छिपाएं 
पकड़  ली है  सफलता की  नब्ज हमने,
मंजिल से कहो हमसे दूर होकर दिखाएं
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15.
खुद अकेला हूं प्रबल मैं लाखों बहुमत के लिए
सर कलम करता रहूंगा शानो-शौकत के लिए
आज हमारे मुल्क पर ये आंख गड़ाए बैठे हैं जो
एक क्षण भी नही दूंगा उनको मोहलत के लिए
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16.
निःशुल्क शिक्षा-ज्ञान के  हर सिलसिले मुबारक हो 
हर हाथ को काग़ज़, कलम,बस्ता मिले मुबारक हो
गुलशन गुलिस्ता-सा खिलें विद्यालय नौनिहालों से
बच्चों सहित अभिभावकों को दाखिले मुबारक हो
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17.
धरती सुलग सुलग कर कि भाप बन रही है
अंधी विकाशशीलता अभिशाप बन  रही  है
रुको,सुनो औ''समझो ठहरो ऐ!दुनिया वालो,
खुराफात तुम्हारी तुमको ही शाप बन रही है
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18.
छुटे-बिछुड़े मिलें सभी दीद मुबारक हो
ख़ुदा करें सभी की उम्मीद मुबारक हो
धर्म-मज़हब भूलकर समूचा हिंदुस्तान,
साथ बैठ  खीर खाये  ईद  मुबारक हो
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20.
ख्वाबों में आसमानी अंबर की तरह
योग-गुणा में अमूमन नंबर की तरह
रीति-क्रम को निभाते-निभाते नरेन्द्र 
बेवफा हो गये हम दिसंबर की तरह
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21.
दिन रात काट रहा हूं घड़ी की तरह
सूखकर हो गया हूं लकड़ी की तरह
हो गया हूं अपाहिज मैं दिल से प्रिये, 
फरवरी में मिलो तुम छड़ी की तरह
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22.
गुल ओ गुलशन बनकर आ रही है 
दर्द ओ उलझन बनकर आ रही है
ताकते मजनू खड़े हैं दूल्हे बनकर 
फरवरी दुल्हन बनकर आ रही है 
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23.
लैला मजनू एक से एक एग्जांपल देखिए 
दुनिया विस्मित देख रही कौतूहल देखिए 
थे बैठे खामोश हम जो दिल पर हाथ धरे,
आई फरवरी लेकर फिर प्रपोजल देखिए
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24.
खुद अच्छा नहीं खुद को खुद लग रहा हूं मैं
कोसता हुआ खुद को खुद सुलग रहा हूं मैं
आश्चर्य हुआ मुझको खुद-खुद से मिलकर,
ना जाने  कब से खुद से  अलग रहा हूं मैं
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25.
दिल की तिजोरी में मोहब्बत का सौदा है
कीमत ना पूछो यारों दिल का मसौदा है
रात-दिन डूबे रहो दिल नही भरता जैसे,
चाहत का दिल नही चाहत का हौदा है
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26.
रहम ख़ुदा की कि तेरे वास्ते कितना मुनासिब कितना अच्छा  हूॅं
दिल  में  तेरे  हर एहसास  को  बड़े  जतन से महफूज़ रक्खा  हूॅं
सुन ये कि मुझे मोहब्बत में बच्चा समझने की तू भूल मत कर,
मैं  मोहब्बत  में  किसी  का  बाप  तो  किसी  का  कक्का  हूॅं
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27.
स्वर में मिला जो स्वर तो राइट हैंड बना ली
भाई वो कह के  पहले  मुझे फ्रैंड बना ली
उलझा  रहा  मैं यूं ही  दोस्ती के  फेर में,
न जाने कब मुझे वो हस्बैंड बना ली
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28.
कर्म को चरित्र को खूब धौत बना के रख
न छोड़  उसे चाहे  मुझे सौत बना के रख
ले आ गईं हूं पास तेरे अब और क्या कहूं,
न जिंदगी  सही त मुझे मौत बना के रख
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29.
मैं छा गया कि छा गया दस्तूर की तरह
उसके दिलो-दिमाग में सुरूर की तरह
भौंचक्का रह गया मैं ये नजारा देखके,
अपना रही है मुझे वो सिंदूर की तरह
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30.
स्वप्न टूटते ही रहें आईना की तरह
हम जूझते ही रहें साइना की तरह
इश्क भी प्रेम भी हो गया आज तो,
दिल भी वस्तुत: चाइना की तरह
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31.
कश्तियां डूब जाती हैं
बस्तियां डूब जाती हैं
सही ईमान ना हो तो,
हस्तियां डूब जाती हैं 
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32.
बौना होता गया
किरौना होता गया
आदमी उत्तरोत्तर
घिनौना होता गया।
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33.
शक्ति है
भक्ति है 
हिंदी हमारे हृदय की 
अभिव्यक्ति है।।

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                                             नरेन्द्र सोनकर 'कुमार सोनकरन'


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