सिहर उठी धरा मणिपुर की
जो बेटी का बलात्कार हुआ
कांप उठी रूह भारत की
जब नारी का चित्कार हुआ
कहां हो तुम जो सबको एक बराबर कहते हो
सुन आदिवासी की बेटी कान बन्द कर लेते हो
तुमको एक पल लाज न आई
देश सारा शर्मसार हुआ
कांप उठी रूह भारत की जब नारी का चित्कार हुआ...
मंजर रंगा रक्त न होता समय रहते संज्ञान जो लेते
महीनों से भड़की आग पर तुम पहले व्यखान जो देते
नफरत करती रही
तांडप लाशों का अंबार हुआ
कांप उठी रूह भारत की
जब नारी का चित्कार हुआ...
वैसे तो तुम बलशाली हो
अद्भुत ज्ञान भंडारी हो
परीक्षा की घड़ी जब आई
दिखे कमजोर खिलाड़ी हो
पीड़ा भरे रहे तुम मन में
छलके आंसूं प्याला नैनन में तुमसे नहीं कोई हल यार हुआ
कांप उठी रूह भारत की
जो नारी का चित्कार हुआ...
- नरेन्द्र सोनकर
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