साहित्य चक्र

24 November 2022

कविताः औरत



अनपढ़ औरत 
बहुत कुछ जानती है वो औरत
जिसे मुझे कम दिमाग कि और अनपढ़ नाम से
मात्र परिचय करवाया मेरे समाज ने
और हमेशा आंकता रहा है
घर के काम और गहनें जेवर से।

शायद गलत है समाज उस जगह पर
जिस जगह से निरंतर देखता है औरतों को 
क्योंकि औरतों को आता है पढ़ना
रहन सहन चेहरा आदमी सबकुछ पढ़ लेती है
और यह किसी किताब में नहीं समाज में लिखा होता है।

वास्तव में औरतें उत्कृष्ट पाठक होती हैं
पढ़ती है समाज को पलटती हैं पन्ने घर द्वार के
वहीं प्राप्त ज्ञान से बाल बच्चों को
देती हैं सीख कई विरासत के रूप में
फिर अनपढ़ कैसे हो सकतीं हैं औरतें भला।


                                                - आलोक रंजन 


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