हिन्दी हूं हिन्दुस्तान की
विद्या के सम्मान की ,
सागर जैसा हैं शब्दों का खजाना हूं
भारत की मजबूत पहचान हूं ,
मां धरती का अवतार हूं
ज्ञान का खूब भंडार हूं ,
हर गली मोहल्ले में रहती हूं
संस्कार संस्कृति का आधार हूं ,
मेरे वाक्यों में तान हैं
विरासत की पहचान हैं ,
" हिन्दी ही रहने दो मुझको
आसमान सा ऊंचा अरमान हैं
इंग्लिश तो बस मजबूरी हैं
हर चक्र में हिन्दी पूरी हैं "
अगर नहीं बोलते हिन्दी
तो शान हमारी अधूरी हैं
जय हिन्द, जय हिन्दी ।
लेखिका- क्रांति देवी आर्य
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