किताब तुम क्यों नहीं झूठ बोलते
क्यों तुम तो जलाएं जाते हो इस दुनिया में
तुम्हारे साथ भी तो किया जाता है
गलत व्यवहार
फिर तो तुम्हें भी करनी चाहिए
चापलूसी बोलना चाहिए झूठ
दुसरे के लिए नहीं बल्कि अपने बचाव के लिए।
तुम सच उगलते आ रहे हो
प्राचीन काल से आधुनिक काल तक
मध्यकाल में भी तुम्हें किसी ने नहीं उकसाया
स्वर्ण मुद्राएं देकर
किसी ने नहीं कहा जोर से
धमका कर की बदलो
मेरा सारा इतिहास और भूगोल।
बताना आने वाली जनमानस को हमारी उपलब्धियां
करना प्रसंशा ताकि आदर्श रहे
और कहीं जिन्दा उनके दिलों दिमाग में
लेकिन तुम तो सब सच सच कह डाले
बात भी बता दी चारणों की और दरबारी कविओं की
तुम उनसे ही आज सामने आये हो
उनकी बातें विचारों को ही पढ़ते हैं हम
लेकिन यकीन करते हैं तुम पर किसी
इतिहासकार दार्शनिक लेखक कवि पर नहीं।
लेखक- आलोक रंजन
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