लाला बनवारी लाल शहर का जाना माना व्यवसायी था जो बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का था। इलाके में कई मंदिरों में वह सप्ताह करवाता था तथा जरूरतमंद लोगों की सहायता करने के लिए हमेशा तैयार रहता था। उसके तीन बेटे थे जिनमें सबसे बड़ा गिरधारी लाल था।लाला बनवारी लाल की मृत्यु के पश्चात गिरधारी लाल ने दुकान का कारोबार संभाला था। वह भी अपने पिता की ही तरह बहुत मिलनसार व धर्मात्मा किस्म का व्यक्ति था ।जहां भी कोई मंदिर, गऊ सदन का काम या भंडारा होता था वह अपनी श्रद्धा के अनुसार दान दिया करता था।
यह संस्कार उसको अपने पिता से विरासत में मिले थे। उसके दो बेटे अजु और बिजु थे जो अब पढ़ लिख कर समझदार हो गए थे।बड़े बेटे अजु ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी जबकि छोटे बेटे बिजु ने स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली थी। उनकी दुकान में लोहे का सारा सामान मिलता था जिससे ग्राहक को एक ही स्थान पर सभी प्रकार का सामान मिल जाता था।उनकी एक फैक्ट्री भी थी जिसमें थ्रेशर,अलमारियां,मक्की कूटने की मशीन आदि बनाये जाते थे।लाला जी की आयु बढ़ने के साथ साथ वह कुछ बीमार भी रहने लगे थे ।उन्होंने धीरे धीरे दुकान का सारा काम इन दोनों बेटों के सुपुर्द कर दिया था तथा खुद दुकान में बैठकर इनके कामकाज की निगरानी किया करते थे । धीरे धीरे दुकान का सारा काम इन दोनों बेटों ने संभाल लिया था।बिजु फैक्ट्री देखता था तथा बीच में दुकान पर भी आ जाता था लेकिन अजु दुकान का काम ही संभालता था।अजु के एक बेटा व एक बेटी थी जबकि बिजु के एक बेटा था जो लगभग 4 वर्ष का था । आज बिजु के बेटे का जन्मदिन था ।
अकेला बेटा होने के कारण सब उसे बहुत लाड़ प्यार से रखते थे।आज घर में खूब चहल पहल थी। आज शाम को बेटे का जन्म दिन खूब जश्न के साथ मनाया जाना था ।बिजु दोपहर का खाना खाकर घर से बेटे के जन्मदिन के लिए सामान व केक लेने के लिए घर से निकला। घर से निकलती बार बेटे ने अपने लिए छोटी कार तथा और भी ढेर सारे खिलौने लाने के लिए कहा था । घर से निकलने से पहले बिजु ने बेटे को गले लगाया तथा सब कुछ लाने का वायदा किया। बिजु ने बाजार जाकर सबसे पहले खिलौने वाले की दुकान से अपने बेटे के लिए बहुत सारे खिलौने खरीदे तथा एक छोटी बैटरी से चलने वाली कार भी उसके लिए खरीदी । उसने ढेर सारे गुब्बारे व सजावट का सामान भी खरीदा ताकि वह शाम को बेटे के जन्मदिन पर घर में खूब सजावट कर सके। बच्चे के खिलौने व अन्य सामान अपनी दुकान पर रखकर वह केक लेने के लिए शहर की मशहूर दुकान अन्नपूर्णा बेक़र्ज़ पर चला गया । घर के सभी लोग आज बहुत खुश थे कि छोटू के बेटे का जन्मदिन है। बिजु क्योंकि लाला जी के दो बेटों में छोटा था अतः उसे सभी छोटू के नाम से ही पुकारते थे ।बाजार में भी उसके असली नाम का बहुत कम लोगों को पता था जबकि सब उसे छोटू ही बुलाते थे ।
उसने दुकान से बहुत सुंदर केक खरीदा तथा केक का बैग हाथ में पकड़ कर पैदल ही वापिस अपनी दुकान की ओर चलने लगा ।अभी वह थोड़ी ही दूर गया था कि जोर से गाड़ी की ब्रेक लगने की आवाज आई।आस पास के सब लोग एकदम इक्कठे हो गए।पीछे से आ रही एक तेज रफ्तार कार ने छोटू को टक्कर मार दी थी। टक्कर इतनी जोर की थी कि केक का बैग छोटू के हाथ से छिटक कर दूर सड़क पर इधर-उधर बिखर गया । उसे तुरंत शहर के हॉस्पिटल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया ।लाला गिरधारी लाल व उसका बड़ा बेटा अजु भी तुरंत हॉस्पिटल पहुंच गए ।पूरे बाजार के लोग भी हॉस्पिटल में इकट्ठा हो गए । छोटू को एम्बुलेंस में जिला अस्पताल ले जाया जा रहा था लेकिन खून ज़्यादा बह जाने के कारण व अंदरूनी चोटों के कारण रास्ते में ही छोटू की मृत्यु हो गई ।किसी ने सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था कि छोटू के बेटे के जन्मदिन पर छोटू इस दुनिया से चला जाएगा ।
जो सोचा नहीं था वह हो गया । बेटे के लिए खरीदी हुई खिलौना कार व अन्य खिलौने दुकान पर ही पड़े थे । बेटा बार-बार पूछ रहा था कि पापा क्यों नहीं आ रहे हैं । मेरी कार लाएंगे मुझे ढेर सारे खिलौने लाएंगे ।सब लोगों की आंखों में अश्रु धारा बह रही थी । बिजु की माता की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।वह ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थी लौट आओ छोटू आज तेरे बेटे का जन्म दिन मनाना है। घर में बेटे के जन्म दिन के लिए लाए गए गुब्बारे अब छोटू की अर्थी पर लगाये जा रहे थे।नन्हे से बेटे की नजरें अपने पापा को ढूंढ रही थी जो उसके लिए बैटरी वाली कार और खिलौने लेने गया था। छोटू का अंतिम संस्कार शहर के शमशान घाट पर कर दिया गया ।कहते हैं होनी अटल है उसे कोई नहीं टाल सकता जो होना है वह निश्चित है ।छोटू ने क्या सोचा था और क्या हो गया ।वह तो अपने बेटे का जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाने के लिए घर से निकला था लेकिन वापस घर नहीं पहुंच सका । पूरे शहर में मातम था । हर किसी की जुबान पर छोटू का ही नाम था लेकिन छोटू ऐसे सफर पर निकल गया था जहां से कोई वापस नहीं आता है।
लेखक- रवींद्र कुमार शर्मा
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