देश का संविधान राष्ट्र का आईना ही नहीं बल्कि एक राष्ट्र का प्रकाश है। जो राष्ट्र को मार्गदर्शक बन कर गतिमान करता है सब को एक सूत्र में बांधकर एकत्व के भाव में पिरोने का काम करता है।एक संविधान राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढांचा ही नहीं बल्कि राष्ट्र की शक्ति को एकता में पिरोहित करते हुए राष्ट्रीय की जनता में एकत्व भाव से एकता का पाठ पढ़ाता है। मानवता, स्वतंत्रता, नैतिकता के साथ और बंधुता से जीना सिखाता है।
एक आदर्श संविधान राष्ट्र की निधि होता है। मनुष्य-मनुष्य के बीच में भेद को मिटा कर। समानता, आदर्शों ,मूल्यों के साथ व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को खड़ा करने का काम करता है। एक संविधान न्याय पूर्ण समाज की व्यवस्था कर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का विकास करने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। हमारा संविधान देश के प्रत्येक व्यक्ति को जोड़ने का काम ही नहीं करता बल्कि एकता के सूत्र में बांधे रखता है। एक राष्ट्र का एहसास भी कराता है। दुनिया में भारतीय संविधान बेजोड़ है। विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। भारतीय संविधान राष्ट्र रुपी देवता का मस्तिष्क है। हमारे देश का संविधान कठोर और लचीला है। हर परिस्थितियों में खरा साबित होने वाला संविधान है। भारतीय संविधान एक ऐसे गुलदस्ते की तरह जिसमें सभी प्रकार के फूल खिले हुए हैं। हमारे संविधान को एक धागे में सुंदर मोतियों की तरह पिरोया गया है। हर प्रकार की परिस्थिति में जोड़ने का काम करता है। हर राष्ट्र को विकास की गति प्रदान करने हेतु एवं विधिवत रूप से चलाने हेतु एक संविधान की आवश्यकता होती है। जो जनता के माध्यम से सरकार को सुशासन प्रदान करने का कार्य करता है। एक उत्कृष्ट कोटि का संविधान उस राष्ट्र के लोकतंत्र में नव प्राण भरकर गतिमान करता है।
हमारे देश का संविधान आजादी के बाद जन्म लेकर एक अरब 40 करोड़ जनता को बांधे हुए हैं और दुनिया का आश्चर्य बना हुआ है। यह हमारे पूर्वजों की महान् उपलब्धि है। भारतीय संविधान सभा के गठन का विचार पहली बार एम.एन. रॉय के मन में 1934 में आया था।1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रथम बार आधिकारिक रूप से संविधान सभा के गठन की मांग की थी और 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की थी कि स्वतंत्र भारत के संविधान का निर्माण संविधान सभा करेगी। 9 दिसंबर 1946 में संविधान सभा की प्रथम बैठक हुई थी। 11 दिसंबर 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष और एससी मुखर्जी को उपाध्यक्ष चुना गया था तथा सर. बी.एन. राव को संवैधानिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। संविधान सभा की संविधान निर्माण से संबंधित कई कार्य समितियां बनाई गई थी। पंडित नेहरू ने भारतीय संविधान को लिखवाने के लिए इंग्लैंड के महान् विधिवेत्ता आइवर जेनिंग्स को न्योता भेजा था तब महात्मा गांधी ने पंडित नेहरू को कहा कि मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूं जो इस राष्ट्र का नागरिक है कानून का ज्ञाता है। कानून का पारखी है। वह डॉक्टर बी. आर अंबेडकर है। डॉक्टर अंबेडकर कांग्रेस के सदस्य नहीं थे। डॉक्टर अंबेडकर "रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया" पार्टी से थे।
प्रारूप समिति (Drafting Committee)
बी. आर. अंबेडकर की अध्यक्षता में गठित प्रारूप समिति जो संविधान सभा की सबसे विशिष्ट समितियों में शामिल थी। इसका गठन 29 अगस्त, 1947 को हुआ था तथा इसमें 7 सदस्य थे। इसकी प्रमुख जिम्मेदारी संविधान सभा का प्रारूप निर्धारित करना था।
संविधान सभा में डॉ. अंबेडकर का निर्वाचन बंगाल प्रांत से हुआ था, लेकिन विभाजन के कारण वह क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान में चला गया। इसलिये डॉ. अंबेडकर का पुनः निर्वाचन बम्बई से हुआ। प्रारूप समिति के सदस्य -(Members of Drafling Committee)
1. डॉ. बी. आर. अंबेडकर (अध्यक्ष)
2. एन. गोपालस्वामी आगर
3. अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
4. डॉ. के. एम. मुंशी
5. सैय्यद मोहम्मद सादुल्ला
6. एन. माधव राव (इन्होंने बी. एल. मित्र को जगह ली क्योंकि उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से त्यागपत्र दे दिया था।)
7. टी. टी. कृष्णमाचारी (1948 में डी.पी. खेतान की मृत्यु पश्चात्। इस प्रारुप समिति के 6 सदस्यों के द्वारा पूर्ण रूप से सहयोग न होने पर सारा कार्यभार डॉक्टर बी आर अंबेडकर पर आ गया और उन्होंने 2 वर्ष 11 माह 18 दिन के कठोर परिश्रम से भारतीय संविधान को तैयार किया। अत: डॉ. अंबेडकर को भारत के "संविधान के पिता", "आधुनिक मनु" की संज्ञा दी जाती है। मूल संविधान में कुल 395 अनुच्छेद 22 भाग और 8 अनुसूचियां थी।
वर्तमान में भारतीय संविधान में 470 अनुच्छेद, 25 भाग और 12 अनुसूचियां हैं। इस संविधान में विश्व अनेक देशों के संविधान की अच्छाइयों को शामिल किया गया।जिसमें ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड,दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया,जर्मनी, जापान, पूर्व सोवियत संघ के देशों से।
हमारे देश का संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हुआ था और अंगीकृत किया गया था (पारित हुआ था) और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। 15 अक्टूबर 2015 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान के निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती पर घोषणा की कि भारत में 26 नवंबर को "संविधान दिवस" के रूप में मनाया जाएगा।" हमारा संविधान न्याय, समता और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। एक संप्रभु , समाजवादी,धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणतंत्र की घोषणा करता है तथा नागरिकों के मूल अधिकार मूल सिद्धांत और कर्तव्य की रक्षा करता है। हमारा मूल संविधान हाथों से अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में लिखा गया था। सुलेख के रूप में संविधान को लिखने वाले उस्ताद प्रेम बिहारी नारायण रायजादा थे। जिसे उन्हें लिखने में 6 माह का समय लिया था। बिना मेहनताना लिए।भारतीय मूल संविधान पर जो चित्रकारी की थी वह आचार्य नंदलाल बोस ने की थी। संविधान के प्रस्तावना पेज को को सजाने का काम राम मनोहर सिन्हा ने किया था। संविधान की कुल 166 बैठकें हुई थी।हमारे संविधान में आपात उपबंध है- राष्ट्रीय आपात अनुच्छेद 352, राष्ट्रपति शासन अनुच्छेद 356 और वित्तीय आपात अनुच्छेद 360 । मूल भारतीय संविधान पर 284 लोगों ने हस्ताक्षर किए थे।संविधान के भाग 3 को भारत का मैग्नाकार्टा कहा जाता है क्योंकि इसमें फंडामेंटल राइट्स का उल्लेख है।संविधान के तैयार होने के बाद डॉक्टर अंबेडकर साहब ने अपने भाषण में यह कहा था कि-" संविधान कितना भी अच्छा हो लेकिन उस को मानने वाले लोग अच्छे नहीं हो तो संविधान खराब सिद्ध होगा और यदि संविधान कितना भी खराब हो और इसे मानने वाले लोग अच्छे हो तो संविधान अच्छा साबित होगा।"
अंबेडकर साहब ने यह सुझाव दिया था कि हमें मात्र राजनीतिक लोकतंत्र से संतुष्ट नहीं होना चाहिए बल्कि हमें समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के अंतर्निहित सिद्धांतों के साथ सामाजिक लोकतंत्र के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।उनका स्पष्ट कहना था कि एक राजनीतिक लोकतंत्र तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक कि उसका आधार सामाजिक लोकतंत्र नहीं होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 को डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान का 'हृदय और आत्मा' कहा है।संविधान के भाग तीन तथा चार मिलकर संविधान की आत्मा तथा चेतना कहलाते हैं। आज संविधान में मूल कर्तव्य 11 है।आज देश के नागरिकों को युवाओं को संविधान के महत्व एवं संविधान की जानकारी होनी चाहिए।संविधान का पालन करना चाहिए। संविधान के प्रति कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार रहकर एक आदर्श नागरिक का परिचय देना चाहिए। जब हम संविधान के कर्तव्यों का निर्वाह करते हैं तो अधिकारों की रक्षा स्वत: होगी। आज हमारा संविधान खतरे में है।
देश का प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य ही नहीं बल्कि नैतिक जिम्मेदारी है कि वह संविधान के नियमों का पालन करें और उस पर चले। यदि संविधान के नियमों की पालना की जाए तो देश में अपराध स्वत: घट जाएंगे। मानवीय एवं नैतिक मूल्यों की अभाव में संवैधानिक मूल्यों की रक्षा तथा सम्मान करना असंभव है। आज हम अपने कर्तव्य को भूलते जा रहे हैं अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे। आज संविधान दिवस पर हम संकल्प लें। एक अच्छे नागरिक के रूप में बनकर राष्ट्र का सम्मान करें। विकास करें। सबकी भलाई में ही हमारी भलाई है।क्योंकि हमसे राष्ट्र हैं और राष्ट्र से हम हैं।
-डॉ. कान्ति लाल यादव
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