जीभ चंचल चुलबुली, तोल तोल कर बोल ।
गया शब्द संसार में, रूप बतावे खोल ।।
चार दिवस की जिंदगी, इधर-उधर मत डोल ।
सबसे प्रीति कर अमन, जीवन है अनमोल ।।
जैसे अपने कर्म है, वैसा ही संसार ।
फल मिलेगा कर्म का, देगा खेवनहार ।।
झूठ, कपट, बदमाशियां, फ़ैल गई चहुँओर ।
लूट लूट की रट लगी, कैसा है यह दौर ।
त्याग और विश्वास के, सूख गए तालाब ।
आदमी न आदमी अब, हो गया है साहब ।।
लेखक- मुकेश अमन
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