साहित्य चक्र

24 November 2022

कविताः जिंदगी के रंग निराले



जिंदगी के रंग हैं बड़े अनोखे
कहीं बफादारी तो कहीं हैं धोखे
सही राह पर जो निकला उसने मंजिल पाई
मिलते नहीं बार बार सबको ऐसे मौके

कहीं पर प्यार है तो कहीं तकरार है
अपना अपना सबका नसीब है
पास होक भी कोई पास नहीं
कोई अमीर है तो कोई गरीब है

कोई दो वक्त की रोटी के लिए
दिन रात पसीना बहाता है
तो किसी को ए सी में बैठ कर भी
बिना कुछ किए सब कुछ मिल जाता है

कोई बच्चों के लिए हो रहा परेशान
तो किसी के बच्चे नहीं रखते उनका ध्यान
माता पिता को सर आंखों पर कोई है बिठाता
तो बृद्धाश्रम में छोड़कर कुचलता उनके अरमान

किसी की उम्र कट गई गरीबी में
खुश रहता है फिर भी हर पल
और कोई खुशी के लिए तरस रहे
निकल गई ज़िन्दगी करते कल कल

किसी को लाल रंग अच्छा लगता
कोई होली है मनाता कोई रंगों से डर जाता
गुलाबी रंग है किसी को सुहाता
दूसरों की सेवा में कोई जिंदगी बिताता

किसी को दूसरों को तंग करने में मज़ा है आता 
गुस्सा है किसी को हर बात पर आता
बात बात पर है कोई रूठ जाता
तो कोई है शांति को अपनाता

कोई पैदल चलता है किसी के पास कार है
किसी के साथ कोई नहीं किसी के पास यार है 
यह ज़िन्दगी के रंग भी है देखो निराले
किसी को यहां नफरत है मिलती किसी को प्यार है


लेखक- रविंदर कुमार शर्मा


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