साहित्य चक्र

21 November 2022

कविताः नशा एक अभिशाप हैं



रोकनी होगी अब ये मनमानी,
करनी होगी दूर ये सारी नादानी,
बदलना होगा अब इस ज़माने को,
हराना होगा खुद के नशा के आदी को

खुद भी त्याग करेंगे औरों को भी सिखाएंगे,
एक साथ मिलकर समाज को नशा मुक्त कराएंगे,
घर में खुशियां लाएंगे दूध मलाई फल मिठाई खाएंगे
पैसे को भी बचाएंगे कभी भी दारु को हाथ नहीं लगाएंगे,

न कभी नशा का सेवन करेंगे न किसी को करने देंगे ,
हर तरफ अपने देश को नशा मुक्त भारत बनाएंगे,
जितने भी हुए है अपराध उस पर रोक लगाएंगे,
हर घर आंगन को खुशियों की बगिया से सजाएंगे ,

सबकी बात को मानेंगे कभी भी किसी को गाली नहीं देंगे,
नशा के कारण किसी के घर का चिराग ना बुझने देंगे,
खुद की इतनी कीमती शरीर को यूंही नहीं गवाएंगे,
कभी भी मां बहन पत्नी को कभी भी नहीं रुलाएंगे,

शराब तंबाकू दूर भगाकर किताब से दोस्ती बढ़ाएंगे,
पढ़ लिख कर मां बाप के हर काम में हाथ बटाएंगे,
नशा एक अभिशाप है सबको यह सिखाएंगे,
ध्रुमपान से मुक्ति दिलाएंगे हर घर जागरूकता फैलाएंगे ,

नशा एक जानलेवा है खुद को और औरों को भी उससे बचाएंगे,
धूम्रपान से कोई इंसान न मरे ऐसी साक्षरता फैलाएंगे,
धूम्रपान एक जहर है इससे सबको अवगत कराएंगे, 
लाखों युवाओं की जीवन को डूबने से बचाएंगे,
नशा के कारण हो रहे अत्याचार पर रोक लगाएंगे,


                                                                     लेखिकाः मनीषा झा 


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