साहित्य चक्र

24 November 2022

व्यंग्य कविताः पीढ़ियों से पूरी शासकीय सुविधाएं ले रहा हूं


शासन ने मेहरबानी किया सहयोग कर
मेरी पिछली पीढ़ियों से सुविधाएं दे रहा है
वर्तमान पीढ़ी संपन्नता से खुश है फ़िर भी
पीढ़ियों से पूरी शासकीय सुविधाएं ले रहा हूं

बंगला गाड़ी बैंक फाइनेंस भरपूर है
प्लाट फ्लैट्स खेती-बाड़ी मज़बूत है
फ़िर भी शासन देता है तो लेता हूं
पीढ़ियों से पूरी शासकीय सुविधाएं ले रहा हूं

दो मकान किराए से खेती अधाई में दिया हूं
बच्चोंको शासकीय सुविधाओंसे जॉब दिलवाया हूं
हरे गुलाबी लेने की सीख दे दिया हूं
पीढ़ियों से पूरी शासकीय सुविधाएं ले रहा हूं

पैसे की कोई कमी नहीं पर फ़िर भी गरीब हूं
शासकीय रिकॉर्ड सेफ बनवाया हूं कि पीड़ित हूं
अंदर खाने करोड़ों का मालिक मज़बूत हूं
पीढ़ियों से पूरी शासकीय सुविधाएं ले रहा हूं

ईडी सीबीआई आईटी का डर नहीं सुरक्षित हूं
दो चार नेताओं को पकड़ा हूं खुश हूं
शासकीय सुविधाएं बनी रहने संघर्ष कर रहा हूं
पीढ़ियों से पूरी शासकीय सुविधाएं ले रहा हूं

लेखक- किशन सनमुखदास भावनानी


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