साहित्य चक्र

22 November 2022

कविताः वक्त





चला चली की बेला है,
फिर भी राही अकेला है,
 क्या खोया क्या पाया,
इसमे उलझा रहता है,
चंद दिन है कही हमारे,
हंसी खुशी गुजार दे,
बीते लम्हे याद कर, 
राही तू क्यो रोता है,
बहुत हुआ इंतजार सभी का,
अब रुखसत की बेला है,
गिले शिकवे सब माफ करना,
यही दस्तूर हमारा है,
खुशियो की बरसात करना,
अब बस वक्त हमारा है,
चला चली की बेला है,
फिर भी राही अकेला है।


                             लेखिकाः गरिमा लखनवी

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