मानवता की चीखें जब रौद्र रूप लेती है
सब्र की सीमा जब क्रोध रुप लेती है
जब मानव मानवता को तरस रहा हो
पानी अम्बर से बेलगाम बरस रहा हो
जब इंसान इंसानियत के पार जाए
सत्य असत्य के समक्ष हर जाए
जब मार्गदर्शको का मान घटने लगे ओर भृष्टओ का सम्मान हो
निति अनीति संग शुद्ध हो जाये ओर अवगुणों का गुणगान हो
जब तम तमहर को ललकार रहा हो
जब वतन हमे पुकार रहा हो
तब जय को पराजय तक आना पड़ता है
नीति अनीति का भेद मिटाना पड़ता है
आवाजो को सत्य तक पाऊचाना पड़ता है
तब देश बचाने हेतु कलम को हथियार बनाना पड़ता है
हे कलमवरों विनती करो मेरी स्वीकार
तुम लिख लिख दोषों पर करो प्रहार
तुम गाथाएं ऐसी लिख डालो
हर एक ह्रदय में देशभक्ति प्रबल कर डालो
तुम लिखो तो ऐसा हो विद्वानों को सवांद मिले
युवाओ को विवेकानंद सा मार्ग मिले
तुम लिख दो तो ये तमनाशी प्रभाकर जाग जायगा
तिमिर स्वंय ह्रदयों से भाग जाएगा
तुम इस प्राणप्रिय वासुन्धरा का श्रृंगार करो
ये लेखनी झुके नहीं प्रतिज्ञा बारम्बार करो
अंजाम चाहें जो हो ये कर्ज चुकाना पड़ता है
सोगई यदि मर्यादाएं इन्हें जगाना पड़ता है
वतन की शान में पल पल कटाना पड़ता है
तब देश बचाने हेतु कलम को हथियार बनाना पड़ता है
जब जंग लगी हो शमशीरों में
रक्त ठंडा होने लगे वीरों में
जब हथियार अपनी धार खोने लगें
शत्रु समक्ष विषबीज बोने लगे
जब रक्षक निढाल हो जाये
जब जिंदगी सवाल हो जाये
जब शौर्य ज्वाल हड़ताल पर हो
प्रशासन जांच -पड़ताल पर हो
तब तब कलम को आगे बढ़ पथ दिखाना पड़ता है
वीरों को झकझोर जागना पड़ता है
यदा-कदा इतिहास दोराहना पड़ता है
तब देश बचाने हेतु कलम को हथियार बनाना पड़ता है
स्वरचित निशा रानी गुप्ता