साहित्य चक्र

23 August 2020

हमारी सोच ऊंची हो



हमारी सोच ऊंची हो, हमारा काम हो ऊंचा
चलें हम राह पर ऐसे, कि जग में नाम हो ऊंचा 

बुराई से परे हों हम, भलाई ही करें हरदम
मन से प्रेम न हो कम, बनाएं सत्य को हमदम
बने जो सच के हम साथी, सदा परिणाम हो ऊंचा

चाहे जो भी हो मुश्किल, किसी का तोडे़ंगे न दिल
पाने का हरेक मंजिल, जज्बा मन में हो शामिल
कि ऊंची जीत पाएंगे , अगर संग्राम हो ऊंचा

न फैलाएं कभी नफरत, सभी सद्भाव में हों रत
हो चाहे धर्म कोई मत, हमेशा शीश रखें नत
हम सब भाई-भाई हैं , यही पैगाम हो ऊंचा 

न रखें भाव हम मैले, कुरीती न कोई फैले
किसी दिल से न हम खेलें, कोई भी दंश न झेले
कि रीति जो सही उसका, सदा आयाम हो ऊंचा

न कोई दुख हो जीवन में , बुजुर्गों को रखें मन में
भले पड़ते न सुमिरन में, नहीं विश्वास पूजन में
बढ़के बाप से मां से, नहीं कोई धाम हो ऊंचा

                              विक्रम कुमार


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