साहित्य चक्र

23 August 2020

घूंघट में चुड़ैल



एक दिन की बात है, मनोज को जो गार्ड की नौकरी करता था ओवर टाइम लगाना पड़ता है और देर रात १२ बजे उसकी छुट्टी होती है। गांव की गलियों में रोशनी की दिक्कत थी लेकिन ये पूनम की रात है और चांद की सफेद रोशनी में बेझिझक वो चला जा रहा है। गांव के बीच में ही एक बड़ा चौराहा था जहां पानी का हैंडपंप लगा हुआ है। मनोज को प्यास लगी है और पानी पीने की सोचता है अचानक मनोज को एक परछाई दस कदम दूर हैंडपंप के पास खड़ी दिखाई देती है। एक औरत इतनी रात को घूंघट लिए खड़ी है चुपचाप ! मनोज पुछता है कौन हो और इतनी रात को यहां क्यूं अकेले खड़ी हो, औरत का कोई जवाब नही आता है। मनोज को शक होने लगता है कि ये कोई और चक्कर तो नही कहीं गांव में किसी से मिलने आती हो ! पर किससे ? मनोज फिर पुछता है कौन गांव की हो इस गांव की तो नही लगती ! औरत का फिर कोई जवाब नही आता।

मनोज कहता है थोड़ी मदद कीजिए ना, हम थोड़ा पानी पी लेंगे प्यास लगी है हाथ थोड़ा हैंडपंप पे दे दीजिए । औरत चुपचाप वहीं खड़ी थी कोई जवाब नहीं देती। अब मनोज खुद पानी पी लेता है और दो कदम आगे बढ़कर पुछता है फिर से, बताओ तो सही कौन हो लेकिन वो औरत भी दो कदम पीछे हट जाती है। मनोज को अजीब लगता है और और वो जल्दी से चार कदम आगे लेता है उतनी ही तेजी से वो औरत भी चार कदम पिछे हो जाती है। अब मनोज को लगता है कि चहरा मैं अब देखकर ही रहूंगा और वो उसकी तरह तेजी से आता है औरत भी भागती है मनोज तेज़ भागने लगता है औरत भी और तेज़ भाग रही है।

भागते भागते मनोज का ध्यान जाता है कि गांव से बाहर आ चुका था और औरत भागती हुई जंगल की तरफ जा रही है। मनोज के दो कदम उसके एक कदम के बराबर हो ग‌ए हैं और जैसे जैसे जंगल के नज़दीक वो जा रही थी वैसे - वैसे उसका शरीर बौना हो रहा था। मनोज भागते भागते डर रहा है, ये क्या हो रहा है वो सोच नही पाता कि करूं क्या! और जैसे ही जंगल के बिल्कुल पास औरत जो बोनी हो चुकी थी वो और भी बौनी हो जाती है।

मनोज अब आव देखता ना ताव वो वापिस घूमता है और इतना तेज़ भागता है जितना तेज़ वो कभी नही भागा था पहले कभी भी। वो घर हांफते हांफते पहुंचता है जगाता है सबको और जो भी हुआ वो बताता है। उसे गांव वालों ने बोला तुम्हारी किस्मत अच्छी थी अगर जंगल में गलती से चले जाते उसके पिछे तो कभी वापिस नही आते।

स्वामी दास

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