नई खबर प्रतिदिन लाते हैं, घर-घर में अखबार ।
भांति-भांति की विषय वस्तु का, करते रोज प्रचार ।
कहीं खबर है राजनीति की, कहीं चुनावी जोर ।
खींचातानी है कुर्सी की, करें रैलियां शोर ।
कितने साधन समाचार के, लैपटॉप अरु फोन ।
मोबाइल पर नेह लुटाते, रिश्ते अब हैं मौन ।
लूट-पाट ,हत्याओं जैसी, खबरों की भरमार ।
कोरोना के रोग से पीड़ित, लाखों हैं बीमार ।।
आग जलाती जब दहेज की, बहन बेटियां खाक ।
कहीं लूट नारी की इज्जत, कर देते नापाक ।
बद से बदतर हाल पड़े जब, महँगाई की मार ।
डूब कर्ज में कृषक हुए हैं, फाँसी को लाचार ।
कब समाज की बदलेगी यह, भयावह तस्वीर ।
कब टूटेगी शोषण की यह पाँव बंधी जंजीर ।।
रीना गोयल
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