साहित्य चक्र

16 August 2020

चाहता हूँ मैं



तेरे शहर में फिर से आना चाहता हूँ मैं
मेरा दिल फिर से जलाना चाहता हूँ मैं

जो आग लगी  लेकिन फिर बुझी  नहीं
उसी राख से धुआँ उठाना चाहता हूँ मैं

इक दरख्त पे अब भी तेरा मेरा नाम है
उसे अब शाख से मिटाना चाहता हूँ मैं

तेरे नाम के  किताबों में  जो गुलाब  हैं
उन सब को घर से हटाना चाहता हूँ मैं

जितनी भी उम्र बढ़ाई तेरी मोहब्बत ने
वो एक-एक लम्हा घटाना चाहता हूँ मैं

कैसे जिया जाता है किसी से बिछड़के
बड़े गौर से तुमको बताना चाहता हूँ मैं

                            सलिल सरोज


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