क्या बात है कि घबराए नज़र आते हो
अपने ही घर में पराए नज़र आते हो
ना तो कोई बात,ना ही कोई मुलाक़ात
दीवार पे चित्र से सजाए नज़र आते हो
सब तो पा लिया है अपनी जिन्दगी में
तो भी क्यूँ तूफाँ उठाए नज़र आते हो
कहने को जोड़ रखा है अपनी माटी से
सूखे पौधा सा मुरझाए नज़र आते हो
अपनी ही देहरी पे छाता करके बैठे हो
किसी सावन से रूलाए नज़र आते हो
कि तुम और रूठ जाओ हरेक बात पे
बस उसी तरह से मनाए नज़र आते हो
सलिल सरोज
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