वह तो हमेशा क़ैद रहती हैं चारदीवारों के बीच ये लॉकडाउन तो उसे पुरुष द्वारा बनाएँ गये नियमों ने दिए है। कभी-कभी तो मुझे लगता है कि ये शब्द कहीं यहीं से तो नही लिया गया। ख़ैर जो भी हो पुरुषों के लिए ये एक नयी चुनौती है। वो खुद को नही क़ैद कर पा रहे उन चारदिवारों के बीच और खुद को रोके भी तो कैसे.. ? उन्हें भी तो घर चलाने के लिए भाग दौड़ करनी ही पड़ेगी यही एक ही तो बहाना है। जिसकी वजह से वो इस महामारी में बाहर निकल सकते है।
घर में रहने वाली स्त्रियाँ जो हफ़्ते में एक दो बार ही पुरुषों की गालियाँ, थप्पड़ खाती थी, वो इस लॉकडाउन में रोज़ ही खा रही है। एक ख़ुराक सुबह तो एक शाम कभी-कभी तो बोनस भी मिल जाता है। “मर्दों को हमारे साथ ऐसा बर्ताव करने की हिम्मत भी औरतें ही देतीं है, उनकी छोटी-छोटी नाजायज़ बातों को मान कर और यही से उनको गलत करने आदत हो जाती है। उनको हमारे साथ कुछ भी करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।” महिलाओं को इन बातों का विरोध करना चाहिए।
गाँव के लगभग हर घर के हालत ऐसे ही हैं कि वहाँ आए दिन मारपीट झगड़ा लड़ाई होती ही रहती है। बाहर रहने वाले सभी लोग अपने-अपने घर आ गए है और उनके पास कोई काम नही है तो कोरोना ही एक मात्र उनके मनोरंजन का साधन है और दोपहर के बाद लोग एक गमछा मुँह पर बाँध के निकल जाते है इस महामारी को चुनौती देने..। अरे भाई अगर मर्द घर से बाहर नहीं निकलेंगे तो ये कोरोना घर-घर कैसे पहुँचेंगा, मोदी जी ने इनको थोड़ी मना किया है घर से बाहर जाने से। राजनीति में तो इन लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है कोरोना की वैक्सीन तो इन लोगों ने बहुत पहले ही बना ली है। जो भी हो यहाँ की राजनीति समझना बहुत ही मुश्किल है। घर की औरतें खेतों में काम करती है और पुरुष चार लोगों के साथ बैठ के मोदी से लेकर ट्रम्प तक की चर्चा कर डालते है। घर बैठे चीन को युद्ध की चुनौती देते है उनके पास सभी ख़बरें होती हैं।
घर पर सब ख़ाली हैं तो छोटी-छोटी बातों पर भी एक दूसरे के जान के दुश्मन बन जाते हैं। गाँव में अगर दो लोगों के बीच कोई विवाद होता है तो उनके बीच पिसती हैं स्त्रियाँ। मलीन किया जाता है उनका चरित्र सारी गालियाँ उनके हिस्से में लिखी हुई है। इसलिये ये उन्हीं के मत्थे मढ़ दी जाती है। दो पुरुषों के बीच पिस जाती हैं बेक़ुसूर स्त्रियाँ...। आखिर क्यों..?
“एक लड़की का
खुद का कोई वजूद
तो होता ही नही
ज़लील होती हैं
हर तरह से लड़कियाँ.
शादी से पहलें
माईके वाले
उसकी ज़िंदगी की तमाम ख़्वाहीस
आज़ादी ...
को एक ख़ाली बक्से
में क़ैद करके
घर के किसी कोने में दफन कर देते हैं।
और शादी के बाद
वो ससुराल वालों के हाथों
की कठपुतली मात्र बन के रह जाती है।
खुली किताब सी होती है एक लड़की
जिसके हर एक पन्नो को
हर कोई बार बार पढ़ना चाहता है।”
पहले की स्त्रियों के हालात में और इक्कीसवीं सदीं की स्त्रियों की स्थिति में कोई खास परिवर्तन मुझे नज़र नहीं आता है। आज भी दहेज उत्पीड़न के वाक़िये सामने आते रहते हैं, बेटियों को जला के मार देने की ख़बर अख़बारों के मुख्य पृष्ठ पर ही पढ़ने को मिल जाती है। रेप के मामले तो इतने वीभत्स होते हैं कि पढ़ के रूह काँप जाती है।
अगर इस समाज ने महिलाओं के प्रति अपना नज़रियाँ नही बदला तो एक दिन ये समाज स्त्रीविहीन हों जाएगा क्यूँकि एक बेटी ही बेटी को जन्म देने से डरेगी और एक दिन ऐसा आएगा कि प्रकृति की संरचना ही डगमगा जाएगी।
एक स्त्री कितना भी पढ़-लिख ले फिर भी वो आज़ाद नहीं कर पाएगी खुद को इस पुरुषवादी समाज केे रूढ़ियों से... जब तक वो ख़ुद इस विचारधारा का खुले तौर पर प्रतिरोध नहीं करेगी। कुछ चंद लड़कियों के आवाज़ उठने से ये समाज नहीं बदलेगा इसके लिए सभी को इकट्टा होना होगा।
बदलनी होगी ये मानसिकता...
आवाज़ उठनी होगी अपने हक़ के लिए..
बाहर निकलना होगा रूढ़ियों की चार-दीवारी से...
मेरा ये मनाना है कि पूरी दुनियाँ की रूपरेखा एक स्त्री से ही तय होती है। देश की प्रगति में भी स्त्री का योगदान अविस्मरणीय है फिर चाहे वो राजनीति हो, खेल, प्रशासन, शिक्षा, आई.टी. आदि सभी क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी पकड़ बनायी हुई है। अगर हम इन सभी बातों को ताक पर रख कर पुरुषवादी विचारधारा का ढिंढोरा पीटते रहेंगे तो एक देश कभी प्रगति नहीं कर सकता है।
अब हम बात करेंगे देश की वर्तमान स्थिति में महिलाओं की भागेदारी:- राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं ने लगातार अपना वर्चस्व बनाए हुई है। ममता बनर्जी, उमा भरती, वसुंधराराजे, मायावती जैसी महिलाएँ अपने किरदार को बुलंदियों तक ले गयी है। आज वो सभी भारतीय राजनीति का एक सफल चेहरा हैं।
खेल में महिलाओं स्थिति:- खेल में भी महिलाओं ने अपना विशेष योगदान दिया है। पी. वी. सिंधु, सानिया मिर्जा, ज्वाला गट्टा, मैरीकॉम जैसे महिला खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा से कई बार भारत को गौरान्वित किया है। इसी तरह अन्य खेलों में भी महिलाओं ने अपना वर्चस्व स्थापित किया है।
शिक्षा एवं शिक्षण में महिलाओं की स्थिति:- शिक्षा एवं शिक्षण कार्य में भी महिलाओं का योगदान सराहनीय रहा है।
महात्मा गाँधी के अनुसार- “एक आदमी को पढ़ाओगे तो एक व्यक्ति शिक्षित होगा और एक स्त्री को पढ़ाओगे तो पूरा परिवार शिक्षित होगा।" बेहतर शिक्षण कार्य महिला ही कर सकती है। वर्तमान समय में महिला साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनाएँ जैसे बेटी पढ़ाओ- बेटी बचाओ सरकार द्वारा शुरू की गयी है। मानव जीवन में एक वृक्ष की तरह विकास की भी कई शाखाएँ होती हैं इसकी हर शाखाओं में महिलाओं की भूमिका अहम है। शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित कर समाज में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
हाल में गणतंत्र दिवस पर शमशाद बेग़म और फूलबासन यादव जी जो छत्तीसगढ़ की निवासी हैं उन्हें साक्षरता के प्रसार-प्रचार में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा हाल ही के दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षा के परिणाम से लड़कियों की स्थिति का अनुमान आसनी से लगाया जा सकता है। ख़ैर शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो लड़के और लड़कियों को एक दूसरे के प्रति सम्मान की दृष्टि पैदा करें, ना की द्वेष की भावना को बढ़ावा दें। क्योंकि अब स्त्रियाँ हर क्षेत्र में पुरुषों के समान ही है।
रोज़गार में महिलाओं की स्थिति:- विश्व स्तर पर लगभग आधी महिलाएं काम करती हैं, और हाल ही में कई देशों में महिला श्रम-बल में वृद्धि के कारण रोजगार में महिला-पुरुषों के बीच का अंतर कम हुआ है। फिर भी भारत की बाजार अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी के रुझान इसको विपरीत दिशा में बढ़ रहे हैं। भारत में महिला श्रम-बल भागीदारी के कम दर ग्रामीण क्षेत्रों की विवाहित महिलाओं पर केंद्रित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मध्यम स्तर की शिक्षा-प्राप्त महिलाएं बच्चों की देखभाल और घरेलू काम पर अधिक समय बिताने को प्राथमिकता देती हैं।
एक सर्वे में पता चला है कि भारत में महिला कामगारों के समक्ष सिर्फ विकल्प ही कम नहीं है बल्कि उन्हें पुरूषों की तुलना में कम वेतन भी मिलता है। समान रूप से शिक्षित होते हुए और समान कार्यों के लिए महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले 34 फीसदी कम वेतन मिलता है। आखिर ऐसा क्यों...?
निष्कर्ष:- हमें महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए सर्वप्रथम समाज में व्याप्त रूढ़ियों को तोड़ना होगा। महिलाओं को विकास के अवसर प्रदान किए जाए। बेहतर शिक्षा की व्यवस्था की जाए। जिससे वो देश दुनियाँ के बारे में जान सकें समझ सकें उनका शारीरिक और मानसिक विकास अच्छी तरह हो। उन्हें उनके श्रम के अनुसार वेतन मुहैया कराया जाए, जिससे कि काम के प्रति उनकी रुचि बनीं रहे और बाकी की महिलाओं को भी स्वावलंबी बनने की प्रेरणा मिलें।
लेखिका- श्रद्धा मंजू