साहित्य चक्र

05 July 2019

वो दस सेकण्ड़ मेरी ज़िन्दगी बदल देते . . . !



वैसे तो मैं अकल्पित था कि जीवन में मुझे इस क्षणिक वक्त के पड़ाव से गुजरना पड़ेगा जहां जाने के नाम तक से मैं कतराता था । जी हां मैं किसी गांव के साधारण लड़के के पुलिस तक के बनने के सफ़र से बेहद अनभिज्ञ था लेकिन मैंने पुलिस बनने का सपना तब जहन में उकेर लिया था जब पड़ोसी गांव के एक लड़के ने अपनी पुलिस कांस्टेबल की लिखित परीक्षाएं उत्तीर्ण कर वह शारीरिक परीक्षाओं के लिए दौड़ में लगभग 400 से अधिक बच्चों को पछाड़कर प्रथम स्थान पर रहा था । तब उसके चेहरे की सच्ची व उसके पापा का उसे रोते हुए गले लगा लेना सच में मेरे दिल तक में अपना घर कर गया था । अब मैं यह ठान चुका था कि मुझे और कुछ भी नहीं करना सिवाय पुलिस की नौकरी के . . . !

मैंने अपनी तैयारी की शुरुआत प्रारंभ की और लगभग ठीक 6 महीनों बाद पुलिस कांस्टेबल की परीक्षाएं होनी थी । मैंने पुरी लगन व मेहनत के साथ तैयारी की वक्त मानों जैसे मुट्ठी में रेत की तरह फिसल रहा था । लिखित परीक्षा हुई जिसमें में अच्छों के साथ उत्तीर्ण हो चुका था लेकिन अब मेरी चिंताएं खत्म नहीं हुई थी क्योंकि अब मुझे सबसे बड़ी चिंता व समस्या शारीरिक परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना था जहां मुझे एड़ी चोटी का जोर लगाना था । शारीरिक परीक्षाओं की अलग - अलग विधियों में मुझे उत्तीर्ण होना था । सबसे पहले मैं वजन मापने के लिए वजन मशीन पर चढ़ा जहां मुझे पहली बार में निराश होना पड़ा मेरा वजन निर्धारित वजन से 2 किलो कम था लेकिन जब निरीक्षक द्वारा यहां कहा गया कि जिनका वजन कम हो वे थोड़ी देर बाद पुनः वजन मापने के लिए आ सकेंगे । यह सुनकर मैं तुरंत ही पास के केले वाले के पास गया और पहली दफा दर्जन केले खा लिए और खूब सारा पानी भी पी लिया । अब मैं वजन मशीन पर वजन तोलने के लिए गया जहां मेरा वजन निर्धारित वजन के बराबर हो चुका था तत्पश्चात मुझे अपनी लंबाई न पाने के लिए भी जाना था जहां मैंने सफलता प्राप्त कर ली ।

अब मुझे आखरी पड़ाव दौड़ के लिए जाना था जो मुझे बेहद मुश्किल व असंभव सा प्रतीत हो रहा था । दौड़ के लिए लगभग 500 से ज्यादा अभ्यर्थी उपस्थित थे । दौड़ प्रारंभ हुई जिसमें 13 चक्करों में दौड़ पूर्ण करनी थी मैं तेजी के साथ दौड़ने लगा था और लगभग अपने 12 चक्कारों तक में अच्छा खासा दौड़ रहा था हमें 25 मिनट में 5 किलोमीटर की दौड़ तय करनी थी । 12 चक्करों में मेरे अच्छे दौड़ने पर मुझे यह लग चुका था कि मैं अब जीत जाऊंगा लेकिन तेरे चक्कर में मैं जरा सा दौड़ने में धीरे रहा और जब मैं निर्णायक के पास पहुंचा तो उन्होंने अपनी घड़ी देखते हुए मुझे कहा कि आप 10 सेकेंड लेट हो चुके हैं । उस समय मेरी निराशा ने मुझे पूरी तरह जर्जर कर दिया था मुझे लगा था कि अब मैं कुछ नहीं कर सकूंगा पछतावा बहुत हो रहा था और मन ही मन बस यही सोच रहा था कि शायद यह 10 सेकंड मेरी जिंदगी बदल देते ।

यदि आप अपने एक सेकण्ड़ को भी व्यर्थ गवाते आते हैं तो आप वक्त को अपनी जिंदगी बदलने के लिए मजबूर कर रहे हैं । अतः समय बड़ा कीमती है उसका सदुपयोग करना चाहिए ।

                                           - सुनील पटेल ' सन्नाटा '



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